Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छत्तीसवा समुद्घात पद - समवहत एवं असमवहत जीवों के अल्पबहुत्व ३०३ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEElectrick
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समुद्घात होते हैं। इसी प्रकार चौबीस दण्डकों में चौबीस दण्डकों का यावत् वैमानिकों के वैमानिक पर्याय तक कथन कर देना चाहिये। ___ विवेचन - केवलि समुद्घात मनुष्य पर्याय में ही होती है, अन्य पर्यायों में नहीं और जिसने केवलि समुद्घात किया है वह संसार परिभ्रमण नहीं करता क्योंकि केवलि समुद्घात के अंतर्मुहूर्त बाद अवश्य मोक्षपद की प्राप्ति होती है। अतः नैरयिकों के मनुष्य पर्याय के अलावा शेष पर्यायों में अतीत
और अनागत केवलि समुद्घात ही नहीं है। नैरयिकों के मनुष्य पर्याय में भी अतीत केवलिसमुद्घात नहीं है क्योंकि जिस जीव ने केवलि समुद्घात किया है उसका नरक गमन नहीं होता। भविष्यकाल में केवलि समुद्घात होगा क्योंकि प्रश्न समय में वर्तमान नैरयिकों में असंख्यात नैरयिक मुक्ति गमन के योग्य है अतः भविष्यकाल में असंख्यात केवलिसमुद्घात कहे गए हैं। जिस प्रकार नैरयिकों के केवलिसमुद्घात के विषय में कहा है उसी प्रकार असुरकुमार आदि यावत् वैमानिकों तक कह देना चाहिये, विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्य पर्याय में अतीत केवलि समुद्घात नहीं होते क्योंकि जिसने केवलि समुद्घात किया है उसका संसार नहीं होता किन्तु भविष्यकाल में अनंत केवलि समुद्घात होंगे क्योंकि प्रश्न समय में वर्तते वनस्पतिकायिकों में अनंत वनस्पतिकायिक जीव ऐसे हैं जो वनस्पतिकाय से निकल कर अनन्तर भव में या परम्परा से केवलि समुद्घात कर मोक्ष जाने वाले हैं।
मनुष्यों के मनुष्य पर्याय में भूतकाल में केवलि समुद्घात कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता क्योंकि जिसने केवलि समुद्घात किया है वह सिद्ध हुआ है और अन्य जीवों ने अभी केवलि समुद्घात किया नहीं है. जब भूतकाल में केवलिसमुद्घात होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत पृथक्त्व-दो सौ से छह सौ झाझेरी होते हैं। भविष्यकाल में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात केवलि समुद्घात होते हैं क्योंकि प्रश्न समय वर्तमान मनुष्यों में कदाचित् संख्यात
और कदाचित् असंख्यात यथासंभव अनन्तर भव अथवा परम्परा से केवलि समुद्घात कर सिद्ध होने वाले हैं। इस प्रकार चौबीस दण्डकों के चौबीस दण्डकों में कुल २४४२४-५७६ आलापक होते हैं।
समवहत एवं असमवहत जीवों के अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! जीवाणं वेयणासमुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतिय समुग्घाएणं वेउब्वियसमुग्घाएणं तेयगसमुग्घाएणं आहारगसमुग्घाएणं केवलिसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया
वा?
____ गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसमुग्घाएणं समोहया, केवलि समुग्घाएणं
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