Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र +++++++++++-+-+-+-+-+-+-+--
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समोहया संखिजगुणा तेयगसमुग्धाएणं समोहया असंखिजगुणा, वेउब्विय समुग्धाएणं समोहया असंखिजगुणा, मारणंतिय समुग्घाएणं समोहया अणंतगुणा, कसाय समुग्घाएणं समोहया असंखिजगुणा, वेयणासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखिजगुणा॥६९७॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन वेदना समुद्घात से, कषाय समुद्घात से, मारणांतिक समुद्घात से, वैक्रिय समुद्घात से, तैजस समुद्घात से, आहारक समुद्घात से और केवलिसमुद्घात से समवहत और असमवहत जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े आहारक समुद्घात से समवहत जीव हैं, उनसे केवलिसमुद्घात से समवहत जीव संख्यात गुणा हैं, उनसे तैजस समुद्घात से समवहत जीव असंख्यात गुणा हैं उनसे वैक्रिय समुद्घात से समवहत जीव असंख्यातगुणा हैं, उनसे मारणांतिक समुद्घात से समवहत जीव अनन्तगुणा हैं, उनसे कषाय समुद्घात से समवहत जीव असंख्यात गुणा हैं उनसे वेदना समुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं और उनसे भी असमवहत जीव संख्यात गुणा हैं। . विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में समुद्घात वाले और समुद्घात से रहित जीवों का परस्पर अल्प बहुत्व कहा गया है जो इस प्रकार है -
सबसे थोड़े आहारक समुद्घात वाले जीव हैं क्योंकि आहारक शरीर कदाचित् इस लोक में छह माह तक होता भी नहीं (आहारक शरीर का विरह छह मास का है) और होता भी है तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्र पृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) ही होता है। आहारक समुद्घात आहारक शरीर के प्रारम्भ काल में ही होता है अन्य समयों में नहीं। आहारक समुद्घात के प्रारम्भ वाले जीव सम्पूर्ण आहारक समुद्घात वालों के संख्यातवें भाग जितने ही होते हैं। अर्थात् आहारक शरीर वाले सहस्र पृथक्त्व होने पर भी समुद्घात वाले जीव शत पृथक्त्व अर्थात् दौ सौ-तीन सौ जितने ही होते हैं। अत: आहारक समुद्घात से समवहत जीव सबसे थोड़े कहे गये हैं। उनसे केवलि समुद्घात वाले जीव संख्यातगुणा हैं क्योंकि वे एक समय शत पृथक्त्व (दो सौ से छह सौ झाझेरी तक) होते हैं। केवलि समुद्घात् वालों से तैजस समुद्घात वाले जीव असंख्यातगुणा होते हैं क्योंकि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, मनुष्यों और देवों में तैजस समुद्घात संभव हैं। उनसे भी वैक्रिय समुद्घात वाले जीव असंख्यातगुणा हैं क्योंकि नैरयिकों, देवों, वायुकायिकों, तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों में भी वैक्रिय समुद्घात संभव है। वैक्रिय समुद्घात वालों से भी मारणांतिक समुद्घात वाले अनंतगुणा हैं क्योंकि अनंत निगोद जीवों के असंख्यातवें भाग सदैव विग्रहगति में होते हैं और वे अधिकांश मारणांतिक समुद्घात वाले होते हैं। मारणांतिक समुद्घात वालों से भी कषाय समुद्घात वाले जीव असंख्यात गुणा होते हैं क्योंकि
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