Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 314
________________ छत्तीसवां समुद्घात पद- चौबीस दण्डकों में बहुत्व की अपेक्षा.... हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये । विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्य पर्याय में अनन्त अतीत और अनन्त अनागत आहारक समुद्घात होते हैं। मनुष्यों के मनुष्य पर्याय में अतीत आहारक समुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। इसी प्रकार भविष्य काल के आहारक समुद्घात के विषय में समझना चाहिये। शेष सभी जीवों का कथन नैरयिकों के समान कह देना चाहिये। इसी प्रकार इन चौबीसों के चौबीस दण्डक होते हैं। विवेचन - नैरयिकों में नैरयिक पर्याय में अतीत और अनागत आहारक समुद्घात नहीं होते क्योंकि आहारक लब्धि होने पर ही आहारक शरीर से आहारक समुद्घात होता है । आहारक लब्धि चौदह पूर्वो का ज्ञान होने पर होती है और चौदह पूर्वों का ज्ञान मनुष्य पर्याय में ही होता है अतः मनुष्य पर्याय के अलावा अन्य पर्यायों में अतीत और अनागत आहारक समुद्घात संभव नहीं है। जैसे नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में आहारक समुद्घात संभव नहीं है उसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्याय में नैरयिकों के अतीत और अनागत आहारक समुद्घात संभव नहीं है। नैरयिकों के मनुष्य पर्याय में असंख्यात अतीत आहारक समुद्घात कहे गए हैं क्योंकि प्रश्न के समय वर्तते नैरयिकों में असंख्यात नैरयिक ऐसे हैं जिन्होंने पूर्व काल में मनुष्य पर्याय प्राप्त कर चौदह पूर्वो का अध्ययन किया है और एक बार दो बार या तीन बार आहारक समुद्घात भी किया है। भविष्यकाल में भी असंख्यात आहारक 'समुद्घात होंगे क्योंकि प्रश्न के समय विद्यमान नैरयिकों में से असंख्यात नैरयिक ऐसे हैं जो नरक से निकल कर अनन्तर भव में या परम्परा से मनुष्य भव प्राप्त करके चौदह पूर्वों का अध्ययन करके एक बार, दो बार या तीन बार या चार बार आहारक समुद्घात करेंगे। जिस प्रकार नैरयिकों का चौबीस दण्डक के क्रम . से कथन किया है उसी प्रकार असुरकुमार आदि का भी प्रत्येक की अपेक्षा चौबीस दंडक के क्रम से यावत् वैमानिकों तक कथन करना चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्य पर्याय में अतीत और अनागत आहारक समुद्घात अनन्त कहना चाहिये क्योंकि पूर्व में चौदह पूर्वों का अध्ययन कर जिन्होंने यथासंभव एक बार, दो बार या तीन बार आहारक समुद्घात किया है ऐसे अनन्त जीव वनस्पतिकाय में रहे हुए हैं। अनन्त जीव ऐसे भी हैं जो वनस्पतिकाय से निकल कर भविष्य में मनुष्य भव धारण कर यथासंभव एक बार, दो बार, तीन बार या चार बार आहारक समुद्घात करेंगे। मनुष्यों के मनुष्य पर्याय में अतीत काल और अनागत काल में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात आहारक समुद्घात होते हैं। क्योंकि प्रश्न समय वर्तमान मनुष्य उत्कृष्ट रूप से भी सबसे थोड़े हैं क्योंकि वे श्रेणि के असंख्यातवें भाग की प्रदेश राशि प्रमाण है इसलिए विवक्षित प्रश्न के समय वर्तमान मनुष्यों में कदाचित् असंख्यात मनुष्य ऐसे हैं जिन्होंने यथासंभव एक बार, दो बार या तीन बार आहारक समुद्घात किया है या भविष्य में करेंगे। मनुष्यों के अलावा शेष सभी जीवों का कथन Jain Education International For Personal & Private Use Only ३०१ ******* www.jainelibrary.org

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