Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चौतीसवां परिचारणा पद परिचारणा द्वार
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बारहवें देवलोक के देव मन की परिचारणा वाले होते हैं। नवग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के देवों में परिचारणा नहीं होती है क्योंकि उनके वेद का उदय बहुत मंद होता है।
तत्थ णं जे ते काय परियारगा देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जइ 'इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं कायपरियारं करेत्तए' तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छराओ ओरालाई सिंगाराई मणुण्णाई मणोहराई मणोरमाइं उत्तरवेडव्वियरूवाइं विउव्वंति विउव्वित्ता तेसिं देवाणं अंतियं पाउब्भवंति, तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं कायपरियारणं करेंति । से जहाणामए सीयापोग्गला सीयं पप्प सीयं चेव अइवइत्ताणं चिट्ठति, उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेव अइवइत्ताणं चिट्ठति, एवमेव तेहिं देवेहिं ताहिं अच्छराहिं सद्धिं कायपरियारणे कए समाणे से इच्छामणे खिप्पामेव अवेइ ॥ ६७८ ॥
कठिन शब्दार्थ - इच्छामणे - इच्छा प्रधान मन अथवा मन में इच्छा, अच्छराहिं.- अप्सराओं के, मणसीकए समाणे - मन करने पर, खिप्पामेव क्षिप्रमेव- शीघ्र ही, सिंगाराई - श्रृंगार - आभूषण आदि से श्रृंगार युक्त ।
भावार्थ- उनमें से जो काय परिचारक देव हैं उनके मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है कि हम अप्सराओं के साथ काय परिचारणा मैथुन सेवन करना चाहते हैं। उन देवों द्वारा इस प्रकार मन से सोचने पर वे अप्सराएं उदार श्रृंगार युक्त मनोज्ञ, मनोहर एवं मनोरम उत्तर वैक्रिय रूप बनाती है । इस प्रकार विकुर्वणा करके वे उन देवों के पास आती है तब वे उन अप्सराओं के साथ कायपरिचारणा करते हैं। जिस प्रकार शीत पुद्गल शीत योनि वाले प्राणी को प्राप्त होकर शीत अवस्था को प्राप्त करके रहते हैं अथवा उष्ण पुद्गल उष्ण योनि वाले प्राणी को पाकर अत्यंत उष्ण अवस्था को प्राप्त करके रहते हैं उसी प्रकार उन देवों द्वारा अप्सराओं के साथ काय परिचारणा करने पर उनका इच्छा प्रधान मन शीघ्र ही हट जाता है अर्थात् तृप्त हो जाता है।
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विवेचन काया की परिचारणा वाले देवों के मन में जब परिचारणा की इच्छा उत्पन्न होती है तो देवियाँ उस इच्छा को जान कर वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार से शोभित, मनोज्ञ, मनोहर, मनोरम, उत्तरवैक्रिय रूप बना कर देवों के सामने उपस्थित होती है। देव इन देवियों के साथ मनुष्य की तरह काया से परिचारणा करते हैं।
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अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं सुक्कपोग्गला ?
हंता अत्थि! तेणं भंते! तासिं अच्छराणं कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ?
गोयमा! सोइंदियत्ताए चक्खिदियत्ताए घाणिंदियत्ताए रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए
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