Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र *EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEksattatreetaketEtattatestEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE*
दूर जहाँ कहीं भी इसके पान होंगे वे खराब हो जायेंगे। क्योंकि सबका सम्बन्ध नागरवेल की जड़ से ही है। इसी प्रकार मन परिचारणा में भी वीर्य के पुद्गल देवी तक स्खलित हो (पहुँच) जाते हैं। . ___तत्थ णं जे ते मणपरियारगा देवा तेसिं इच्छामणे समुप्पजइ-'इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेत्तए' तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छराओ तत्थ-गयाओ चेव समाणीओ अणुत्तराई उच्चावयाइं मणाई संपहारेमाणीओ संपहारेमाणीओ चिटुंति, तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेंति, सेसं णिरवसेसं तं चेव जाव भुजो-भुजो परिण ति॥६८०॥
भावार्थ - उनमें जो मन परिचारक देव होते हैं, उनके मन में इच्छा उत्पन्न होती है-हम .. अप्सराओं के साथ मन से परिचारणा करना चाहते हैं। तत्पश्चात् उन देवों के द्वारा मन में इस प्रकार इच्छा होने पर वे अप्सराएं शीघ्र ही वहीं रही हुई उत्कृष्ट उच्च-नीच मन को धारण करती हुई रहती है तत्पश्चात् वे देव उन अप्सराओं के साथ मन से परिचारणा करते हैं। शेष सारा वर्णन यावत् बारबार परिणत होते हैं तक कहना चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में देवों की परिचारणा विषयक कथन किया गया है। देवों में काय परिचारणा की तरह ही स्पर्श परिचारणा होती है। स्पर्श परिचारणा में परस्पर आलिंगन, मर्दन आदि रूप स्पर्श द्वारा ही विषय सेवन होता है। रूप परिचारणा में देवियाँ अनेक प्रकार के उत्तरवैक्रिय से रूपों की विकुर्वणा कर देवों के स्थान पर उपस्थित होती है और देवों के न समीप और न दूर रह कर अपना रूप दिखाती है। रूप परिचारणा में परस्पर सविलास, दृष्टि विक्षेप, अंग प्रत्यंग प्रदर्शन आदि द्वारा तृप्ति अनुभव करते हैं। शब्द प.िचारणा में भी देवियाँ देवों के स्थान पर आकर देवों के न समीप न दूर रह कर मधुर मन में आनंद उत्पन्न करने वाले अनुपम उच्च नीच शब्द बोलती है तब देव देवियों के साथ शब्द परिचारणा करते हैं। मन परिचारणा वाले देवों के मन में जब मन परिचारणा की इच्छा होती है तो देवियाँ उनकी इच्छा जान कर यावत् उत्तर वैक्रिय कर अपने स्थान पर ही परम संतोष जनक अनुपम उच्च-नीच मनोभाव धारण किये रहती हैं तब देव उन देवियों के साथ मन परिचारणा करते हैं। ___काय परिचारणा की तरह ही स्पर्श परिचारणा, रूप परिचारणा, शब्द परिचारणा और मन परिचारणा में देवियों के शरीर में दिव्य प्रभाव से देवता के शुक्र पुद्गल संक्रांत होते हैं।
७. अल्प बहुत्व द्वार एएसि णं भंते! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं, अपरियारगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
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