Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
छत्तीसवां समुद्घात पद - एक एक जीव के अतीत-अनागत समुद्घात
२८५
*craticketekakakakakakakakakakakakakakak
a
a
rateeksEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEktakestastick
णेरइयाणं भंते! केवइया केवलिसमुग्घाया अतीता? गोयमा! णत्थि। केवइया पुरेक्खडा?
गोयमा! असंखेजा, एवं जाव वेमाणियाणं। णावरं वणस्सइकाइया मणूसेसु इमं णाणत्तं।
वणस्सइकाइयाणं भंते! केवइया केवलिसमुग्घाया अतीता? गोयमा! णत्थि। केवइया पुरेक्खडा? गोयमा! अणंता। मणूसाणं भंते! केवइया केवलिसमुग्घाया अतीता?
गोयमा! सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयपुहुत्तं।
केवइया पुरेक्खडा? सिय संखेज्जा, सिय असंखेजा॥६८८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं ? उत्तर - हे गौतम ! नैरयिकों के अतीत केवली समुद्घात एक भी नहीं है। प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितने अनागत केवलि समुद्घात हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के अनागत केवलि समुद्घात असंख्यात हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक समझना चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिक जीवों और मनुष्यों में भिन्नता है। यथा -
प्रश्न - हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों के अतीत केवली समुद्घात कितने हैं ? उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायिकों के अतीत केवलिसमुद्घात नहीं है। प्रश्न - हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों के अनागत केवली समुद्घात कितने हैं ? उत्तर - हे गौतम ! वनस्पतिकायिकों के अनागत केवली समुद्घात अनन्त हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के कितने केवली समुद्घात अतीत है?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों के अतीत केवली समुद्घात कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो जघन्य एक, दो या तीन उत्कृष्ट शतपृथक्त्व हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org