Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र katticketeEEEEkkerlekateketsetseateElekEEEEEEEEEEEEEEEEEEatestetasek a rketEEEEEEEEEEEEEEEElateIntellectetnterestellateletetettesletest
. ५. दुःख आदि वेदना द्वार कइविहा णं भंते! वेयणा पण्णत्ता? गोयमा! तिविहा वेयणा पण्णत्ता। तंजहा - दुक्खा, सहा, अदुक्खमसुहा। णेरइया णं भंते! किं दुक्खं वेयणं वेदेति पुच्छा?
गोयमा! दुक्खं पि वेयणं वेदेति, सुहं पि वेयणं वेदेति, अदुक्खमसुहं पि वेयणं वेदेति, एवं जाव वेमाणिया॥६८३ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - १. दुःखा २. सुखा और ३. अदुःख-सुखा।
प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक क्या दुःखा वेदना वेदते हैं, सुखा वेदना वेदंते हैं या अदुःख-सुखा वेदना वेदते हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव दुःखा वेदना भी वेदते हैं, सुखा वेदना भी वेदते हैं और अदुःखसुखा वेदना भी वेदते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कह देना चाहिये।
विवेचन - जिसमें दुःख का वेदन हो वह दुःखा, जिसमें सुख का वेदन हो वह सुखा वेदना कहलाती है किन्तु जो वेदना एकान्त दुःख रूप नहीं कही जा सकती क्योंकि सुख भी होता है और वह एकान्त सुख रूप भी नहीं कही जा सकती क्योंकि दुःख भी होता है अत: वह अदुःख सुखा-सुखदुःखात्मिका वेदना कहलाती है।
शंका - फिर साता, असाता, साता-असाता तथा सुखा, दुःखा और अदुःखसुखा वेदना में क्या । अंतर है?
. समाधान - साता, असाता, साता-असाता रूप वेदना कर्म से उदय प्राप्त वेदनीय कर्म पुद्गलों के अनुभव से होती है जबकि सुखा, दुःखा और अदुःखसुखा वेदना दूसरों से दी जाती है। चौबीस ही दण्डकों के जीव सुखा, दुःखा, अदुःखसुखा रूप तीनों प्रकार की वेदना वेदते हैं।
६. आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी वेदना द्वार कइविहा णं भंते! वेयणा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा वेयणा पण्णत्ता। तंजहा - अब्भोवगमिया य उवक्कमिया य। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है?
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