Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! जोइसिया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - माइमिच्छहिट्ठिउववण्णगा य अमाइसम्महिट्ठिउववण्णगा या तत्थ णं जे ते माइमिच्छदिट्ठिउववण्णगा ते णं अणिदायं वेयणं वेदेति, तत्थ णं जे ते अमाइसम्महिट्ठिउववण्णगा ते णं णिदायं वेयणं वेदेति, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ - 'जोइसिया दुविहं पि वेयणं वेदेति' एवं वेमाणिया वि॥६८५॥
॥पण्णवणाए भगवईए पणतीसइमं वेयणापयं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - माइमिच्छद्दिष्ट्ठिउववण्णगा - मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक, अमाइसम्मद्दिष्टिउववण्णगा - अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! ज्योतिषी देव निदा वेदना वेदते हैं या अनिदा वेदना वेदते हैं ? उत्तर - हे गौतम! ज्योतिषी देव निदा वेदना भी वेदते हैं और अनिदा वेदना भी वेदते हैं।
प्रश्न - हे भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि ज्योतिषी देव निदा वेदना भी वेदते हैं और अनिदा वेदना भी वेदते हैं।
उत्तर - हे गौतम! ज्योतिषी देव दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और २. अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक। उनमें जो मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक हैं वे अनिदावेदना वेदते हैं और जो अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक हैं वे निदा वेदना वेदते हैं। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि ज्योतिषी देव निदा, अनिदा दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। इसी प्रकार वैमानिक देवों के विषय में भी समझना चाहिये।
विवेचन - ज्योतिषी और वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं - १. मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और २. अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक। जो मायी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न हुए हैं वे मिथ्यादृष्टि से, व्रत विराधना से या अज्ञान तप से - 'हम इस प्रकार से उत्पन्न हुए हैं' - ऐसा नहीं जानते अतः सम्यक् रूप से यथावस्थित ज्ञान के अभाव से वे अनिदा वेदना का अनुभव करते हैं। इससे विपरीत जो अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न हुए हैं वे सम्यग्दृष्टि के कारण यथावस्थित स्वरूप को जानते हैं अतः जो भी वेदना वेदते हैं वह निदा वेदना होती है।
॥प्रज्ञापना भगवती सूत्र का पैंतीसवा वेदना पद समाप्त॥ .
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