Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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छत्तीसवां समुद्घात पद - चौवीस दण्डकों में समुद्घात
२७७
WHENNHENNHEI-PENNHENH-
KEYE树林中41F4-4-1
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वेदना समुद्घात कितने समय का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! वेदना समुद्घात असंख्यात समयों वाले अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है। इसी प्रकार यावत् आहारक समुद्घात तक कहना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन् ! केवली समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! केवली समुद्घात आठ समय का कहा गया है।
विवेचन - पहली छह समुद्घात का काल अंतर्मुहूर्त (असंख्यात समय का अंतर्मुहूर्त) का है तथा केवली समुद्घात का काल आठ समय का है।
यहाँ पर वेदना आदि समदघातों की जघन्य उत्कष्ट स्थिति अन्तर्महर्त्त की बताई है। वह सामान्य नय (अपेक्षा) से समझना चाहिये। अन्य आगमपाठों (भगवती सूत्र आदि) से 'कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात तथा वैक्रिय समुद्घात की जघन्य स्थिति एक समय की होना स्पष्ट हो जाता है। भगवती सूत्र शतक ८ उद्देशक ९ में - 'वैक्रिय शरीर के सर्वबन्ध की स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट दो समय बताई है।' इस आगमपाठ से वैक्रिय समुद्घात की जघन्य स्थिति एक समय की होना स्पष्ट हो जाता है।
चौवीस दण्डकों में समुद्घात णेरइयाणं भंते! कइ समुग्घाया पण्णत्ता? __गोयमा! चत्तारि संमुग्घाया पण्णत्ता। तंजहा - वेयणासमुग्याए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउव्वियसमुग्घाए।
असुरकुमाराणं भंते! कइ समुग्घाया पण्णत्ता? - गोयमा! पंच समुग्घाया पण्णत्ता। तंजहा - वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउव्वियसमुग्घाए, तेयासमुग्घाए, एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविक्काइयाणं भंते! कइ समुग्धाया पण्णत्ता?
गोयमा! तिण्णि समुग्घाया पण्णत्ता। तंजहा - वेयणा समुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, एवं जाव चउरिदियाणं। णवरं वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्घाया पण्णत्ता। तंजहा - वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउव्वियसमुग्घाए।
पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जाव वेमाणियाणं भंते! कइ समुग्घाया पण्णत्ता?
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