Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२८०
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प्रज्ञापना सूत्र
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जीव विवक्षित प्रश्न समय के पश्चात् वेदना समुद्घात किये बिना ही नरक से निकल कर मनुष्य भव में वेदना समुद्घात किये बिना ही सिद्ध होता है उसे भविष्य में एक भी वेदना समुद्घात नहीं होगा किन्तु जो जीव विवक्षित प्रश्न समय पश्चात् शेष आयुष्य काल में कितने काल तक नरक भव में आकर तत्पश्चात् मनुष्य भव पाकर सिद्ध होता है उसकी अपेक्षा एक आदि समुद्घात संभव है। संख्यात काल तक रहने वाले के संख्यात, असंख्यात काल तक संसार में रहने वाले के असंख्यात और अनंतकाल • संसार में रहने वाले के अनन्त वेदना समुद्घात होते हैं। नैरयिकों की तरह असुरकुमार यावत् वैमानिक देवों तक कहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि सभी असुरकुमार आदि स्थानों में अतीत काल में अनंत वेदना समुद्घात कहना और अनागत काल में वेदना समुद्घात किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिनके होते हैं उन्हें भी जघन्य से एक, दो, तीन और उत्कृष्ट से संख्यात, असंख्यात और अनन्त समुद्घात कहने चाहिये। इसी प्रकार चौबीस दण्डक के क्रम से कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात और तैजस समुद्घात के विषय में समझ लेना चाहिये। इस प्रकार प्रत्येक दंडक के विषय में कहने से चौबीस दण्डकों के पांचों समुद्घात की अपेक्षा कुल २४४५ = १२० सूत्र होते हैं ।
एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स केवइया आहारगसमुग्धाया अतीता ?
गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिणि ।
केवइया पुरेक्खडा ?
कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि । जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । एवं णिरंतरं जावं वेमाणियस्स । णवरं मणूसस्स अतीता वि पुरेक्खडा वि जहा णेरइयस्स पुरेक्खडा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक के अतीत आहारक समुद्घात कितने हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक एक नैरयिक के अतीत आहारक समुद्घात किसी के होता है और किसी के नहीं होता। जिसके होता है उसके भी जघन्य एक या दो उत्कृष्ट तीन होते हैं।
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प्रश्न - हे भगवन् ! एक-एक नैरयिक के अनागत (भविष्य) के आहारक समुद्घात कितने होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! एक - एक नैरयिक के अनागत आहारक समुद्घात किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार आहारक समुद्घात होते हैं। इसी प्रकार यावत् निरंतर वैमानिकों तक कहना चाहिये। विशेषता यह है कि मनुष्य अतीत और अनागत आहारक समुद्घात नैरयिक के अनागत आहारक समुद्घात के समान है।
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