Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
पैतीसवां वेदना पद - साता आदि वेदना द्वार
२६९ ESHEEHEREETEEEEEEEEklelEEREJETERESEREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEELATE
RETEENETETaketakalelkattelseksek!REFERENEFTER
शारीरिक मानसिक) वेदते हैं। एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों में मन नहीं होने से वे मानसिक और शारीरिक-मानसिक वेदना नहीं वेदते हैं केवल शारीरिक वेदना ही वेदते हैं।
४. साता आदि वेदना द्वार कइविहा णं भंते! वेयणा पण्णत्ता? गोयमा! तिविहा वेयणा पण्णत्ता। तंजहा - साया, असाया, सायासाया। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - १. साता २. असाता और ३. साता-असाता।
विवेचन - सुख रूप वेदना साता वेदना कहलाती है। दुःख रूप वेदना को असाता वेदना कहते हैं। सुख-दुःख उभय रूप वेदना साता-असाता वेदना कहलाती है। . णेरइया णं भंते! किं सायं वेयणं वेदेति, असायं वेयणं वेदेति, सायासायं वेयणं वेदेति?
गोयमा! तिविहं पि वेयणं वेदेति, एवं सव्वजीवा जाव वेमाणिया।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक क्या साता वेदना वेदते हैं, असाता वेदना वेदते हैं या साता असाता वेदना वेदते हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक तीनों प्रकार की वेदना वेदते हैं, इसी प्रकार सभी जीवों यावत् वैमानिकों तक समझना चाहिये। - विवेचन - नैरयिक से लगा कर वैमानिक तक चौबीस ही दण्डक के जीव तीनों प्रकार की वेदना (सांता, असाता, साताअसाता) वेदते हैं । नैरयिक तीर्थंकरों के जन्मादि के समय साता वेदना वेदते हैं और शेष समय में असाता वेदना वेदते हैं। जब पूर्व भव का मित्र देव या दानव वचनामृतों से शांत करता है तब मन में साता और क्षेत्र के प्रभाव से असाता का अनुभव करते हैं अथवा मन में ही उनके दर्शन से और उनके वचन सुनने से साता और पश्चात्ताप के अनुभव से असाता वेदना वेदते हैं तब साता-असाता वेदना कही है। नैरयिकों की तरह ही वैमानिक पर्यंत कहना चाहिये। पृथ्वीकायिक आदि जीव जब तक कोई उपद्रव नहीं होता है तब तक साता और उपद्रव होने पर असाता का अनुभव करते हैं और भिन्न-भिन्न अवयवों में उपद्रव होने और न होने से साता-असाता वेदना वेदते हैं। वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक, देव सुख का अनुभव करते हुए साता वेदना, च्यवन आदि के समय असाता वेदना तथा दूसरों की संपत्ति आदि देखने से मात्सर्य आदि का अनुभव और अपनी प्रिय देवी के मधुर आलापादि का अनुभव एक साथ हो तब साता-असाता वेदना वेदते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org