Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
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___ से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-"वेमाणिया अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति?"
गोयमा! वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - माइमिच्छहिटिउववण्णगा य अमाइसम्महिट्ठिउववण्णगा य, एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणियं तहा भाणियध्वं जाव से एएणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ०॥६७५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वैमानिक देव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं क्या वे उनको जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं अथवा वे न जानते हैं, न देखते हैं और आहार करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! कई वैमानिक देव जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं और कई न जानते हैं, न देखते हैं, आहार करते हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि - १. कई वैमानिक देव जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं और २. कई वैमानिक देव नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं किन्तु आहार करते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और २. अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक। इस प्रकार जैसे प्रथम इन्द्रिय उद्देशक में कहा है उसी प्रकार यहाँ भी यावत् इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा गया है तक कहना चाहिये।
विवेचन - वैमानिक देवों के दो भेद हैं - १. मायी मिथ्यादृष्टि और २: अमायी सम्यग्दृष्टि। मायी मिथ्यादृष्टि देव ग्रैवेयक की ऊपर की त्रिक के अन्त तक होते हैं जबकि अमायी सम्यग्दृष्टि देव अनुत्तर विमानवासी होते हैं। इस विषय में मूल टीकाकार कहते हैं -
"वेमाणिया मायिमिच्छादिट्ठिउववनगा जाव उवरिमगेवेज्जा, अमायिसम्मदिट्ठी-उववण्णगा अनुत्तरसुरा एवं गृह्यन्ते" इति
इनमें जो मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक देव हैं अर्थात् ऊपर की त्रिक के ऊपर के ग्रैवेयक तक के देव हैं वे मन से-संकल्पमात्र से भक्षण करने योग्य आहार के परिणाम के योग्य पुद्गलों को अवधिज्ञान से नहीं जानते हैं क्योंकि वे पुद्गल उनके अवधिज्ञान का विषय नहीं होते और आँखों से देखते भी नहीं क्योंकि आँखों का तथाप्रकार का सामर्थ्य नहीं है। जो अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक अर्थात् अनुत्तर विमानवासी देव हैं वे दो प्रकार के हैं - १. अनन्तरोपपन्नक-प्रथम समय में उत्पन्न यानी जिनको उत्पन्न हुए एक भी समय का अन्तर नहीं पडा है २. परम्परोपपन्नक - जिनको उत्पन्न हुए द्वितीय आदि समय हुआ है अर्थात् जिनको उत्पन्न होने में समय आदि का अन्तर पड़ा है। इनमें जो अनन्तरोपपन्नक हैं वे जानते नहीं, देखते नहीं क्योंकि प्रथम समय में उत्पन्न हुए होने से उनके अवधिज्ञान का उपयोग और चक्षुइन्द्रिय नहीं किन्तु जाने और देखे बिना ही आहार करते हैं। उनमें जो परम्परोपपन्नक हैं वे दो प्रकार
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