Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापासू
चउरिदिया णं पुच्छा ?
गोयमा ! अत्थेगइया ण जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ।
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! चउरिन्द्रिय जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं क्या उन्हें जानते देखते हैं और उनका आहार करते हैं अथवा नहीं जानते, नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं ? उत्तर - हे गौतम! कई चउरिन्द्रिय जीव आहार के रूप में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों को नहीं जानते, किन्तु देखते हैं और आहार करते हैं और कई चउरिन्द्रिय जीव न तो जानते हैं न देखते हैं किन्तु आहार करते हैं ।
विवेचन कितनेक चउरिन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो आहार रूप ग्रहण किये हुए पुद्गलों को जानते नहीं क्योंकि वे मिथ्याज्ञानी होते हैं और बेइन्द्रियों की तरह उनका मति अज्ञान भी अस्पष्ट होता है किन्तु चक्षु इन्द्रिय होने से वे देखते हैं जैसे कि मक्खी आदि गुड़ आदि वस्तुओं को देखती है और उनका आहार करती है। अन्य कितनेक चउरिन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो मिथ्याज्ञानी होने से जानते नहीं किन्तु अंधकार आदि के कारण चक्षु का उपयोग नहीं लगने से वे देख भी नहीं पाते हैं पर आहार करते हैं। '
चौरेन्द्रिय प्रक्षेपाहार के स्वरूप को नहीं जानता है । परन्तु चक्षु होने से देखता है। कितनेक अंधकार तथा अंधे हो जाने इत्यादि कारणों से नहीं देखते हैं। चौरेन्द्रिय ओजाहार, रोमाहार को नहीं जानते 'नहीं देखते-आहार करते हैं। प्रक्षेपाहार भी रात्रि आदि में कभी आँख विकृत हो जाने से नहीं जानते नहीं देखते आहार करते हैं। बादर प्रक्षेपाहार को नहीं जानते देखते आहार करते हैं। चौरेन्द्रिय एवं असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कवलाहार की अपेक्षा समझना। क्योंकि चक्षु के द्वारा रोमाहार देखना संभव नहीं है।
पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया णं पुच्छा ।
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गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति ? अत्थेगइया जाणंति ण पासंति आहारेंति २, अत्थेगइया ण जाणंति पासंति आहारेंति ३, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ४ एवं जाव मणुस्साण वि । वाणमंतर जोइसिया जहा णेरइया ।
भावार्थ - प्रश्न तिर्यंच पंचेन्द्रियों के विषय में पूर्ववत् पृच्छा ।
उत्तर- गौतम ! १. कई पंचेन्द्रिय तिर्यंच ग्रहण किये जाने वाले आहार के पुद्गलों को जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं २. कई जानते हैं देखते नहीं और आहार करते हैं ३. कई जानते नहीं, देखते हैं और आहार करते हैं और ४. कई न तो जानते हैं, न देखते हैं किन्तु आहार करते हैं। इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में समझना चाहिये । वाणव्यंतरों और ज्योतिषियों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान समझनी चाहिये ।
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