Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२५६
प्रज्ञापना सूत्र
कठिन शब्दार्थ- संम्मत्ताभिगमी - सम्यक्त्वाभिगामी- सम्यक्त्व की प्राप्ति वाला, मिच्छत्ताभिगमीमिथ्यात्वाभिगामी-मिथ्यात्वं की प्राप्ति वाला, सम्मामिच्छत्ताभिगमी - सम्यग्मिथ्यात्वाधिगामी - सम्यक्त्व मिथ्यात्व (मिश्र) की प्राप्ति वाला।
ननननननननन
भावार्थ - प्रश्न हे भगवन् ! क्या नैरयिक सम्यक्त्वाधिगामी - सम्यक्त्व की प्राप्ति वाला होता है, मिथ्यात्व की प्राप्ति वाला होता है या सम्यग् मिथ्यात्व की प्राप्ति वाला होता है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक सम्यक्त्व की प्राप्ति वाला भी होता है, मिथ्यात्व की प्राप्ति वाला भी होता है और सम्यग् - मिथ्यात्व की प्राप्ति वाला भी होता है। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना चाहिये किन्तु विशेषता है कि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय सम्यक्त्व प्राप्ति वाले नहीं होते; सम्यग् -मिथ्यात्व की प्राप्ति वाले नहीं होते किन्तु मिथ्यात्व की प्राप्ति वाले होते हैं। अभिगम और अधिगम दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त हो सकते हैं । अतः दोनों शब्दों का प्रयोग सही है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौबीस दण्डकों के जीवों में कौन-कौन से जीव सम्यक्त्वाभिगामी मिथ्यात्वाधिगामी और सम्यक्त्व - मिथ्यात्वाधिगामी हैं उसका निरूपण किया गया है। एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों को छोड़ कर शेष सभी जीव सम्यक्त्व की प्राप्ति वाले भी होते हैं, मिथ्यात्व की प्राप्ति वाले भी होते हैं और सम्यक्त्व मिथ्यात्व की प्राप्ति वाले भी होते हैं, सम्यक्त्व और सम्यक्त्व - मिथ्यात्व की प्राप्ति वाले नहीं होते । यद्यपि कितनेक विकलेन्द्रिय जीवों को सास्वादन सम्यक्त्व पाया जाता है तथापि वे मिथ्यात्व की ओर ही अभिमुख होने के कारण सम्यक्त्व होने पर भी सूत्रकार ने उसकी यहां . विवक्षा नहीं की है।
६. परिचारणा द्वार
देवा णं भंते! किं सदेवीया सपरियारा, सदेवीया अपरियारा, अदेवीया सपरियारा, अदेवीया अपरियारा ?
गोमा ! अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया सपरियारा, अत्थेगइया देवा अदेवीया अपरियारा, णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा, तं चेव जाव णो चेवणं देवा सदेवीया अपरियारा ?
Jain Education International
गोयमा ! भवणवइ वाणमंतर जोइस सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा सदेवीया सपरियारा, सणकुमारा माहिंद बंभलोगलंतगमहासुक्कसहस्सार- आणयपाणय- आरण अच्चुएसु कप्पेसु देवा अदेवीया सपरियारा, गेवेज्ज अणुत्तरोववाइया देवा अदेवीया
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org