Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चौतीसवां परिचारणा पद पुद्गल ज्ञान द्वार
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विवेचन - पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में प्रक्षेपाहार की अपेक्षा चौभंगी इस प्रकार समझनी चाहिये - १. कितनेक पंचेन्द्रिय तिर्यंच सम्यग्ज्ञानी होने से प्रक्षेपाहार को जानते हैं चक्षुइन्द्रिय होने से देखते हैं और आहार करते हैं २. कितने सम्यग्ज्ञानी होने से यथावस्थित परिज्ञान होने के कारण जानते हैं परन्तु अंधकार आदि में चक्षुइन्द्रिय के अनुपयोग से देखते नहीं हैं ३. कितनेक तिर्यंच पंचेन्द्रिय मिथ्याज्ञानी होने के कारण जानते नहीं, किन्तु चक्षुइन्द्रिय के उपयोग से देखते हैं ४. कितनेक मिथ्याज्ञानी होने से जानते नहीं, चक्षुइन्द्रिय के उपयोग के अभाव में देखते नहीं किन्तु आहार करते हैं ।
लोमाहार की अपेक्षा चौभंगी इस प्रकार हैं - १. कितनेक तिर्यंच पंचेन्द्रिय अवधिज्ञान का विषय होने के कारण लोमाहार को जानते हैं, तथाप्रकार के क्षयोपशम होने से और इन्द्रिय सामर्थ्य अति विशुद्ध होने से देखते हैं और आहार करते हैं २. कितनेक तिर्यंच पंचेन्द्रिय अवधिज्ञान से रहित होने के कारण जानते नहीं, इन्द्रिय सामर्थ्य के अभाव में देखते भी नहीं हैं ३. कितनेक जानते नहीं किन्तु इन्द्रिय सामर्थ्य होने से देखते हैं और ४. कितनेक मिथ्याज्ञान होने से, अवधिज्ञान रहित होने से या अवधिज्ञान के विषय से अतीत होने से जानते नहीं और तथाप्रकार के इन्द्रिय सामर्थ्य के अभाव से देखते भी नहीं हैं । किन्तु आहार करते हैं इसी प्रकार मनुष्यों में भी लोमाहार और प्रक्षेपाहार की अपेक्षा चौभंगियाँ समझ लेनी चाहिये ।
तिर्यंचं पंचेन्द्रिय सम्यग्दृष्टि श्रावक - शिक्षितादि हो, विशिष्टज्ञानी अवधिज्ञानी आदि आहार के स्वरूप को जानते हैं आँखों से देखते हैं या ज्ञान से भी देख सकते हैं तथा आहार ग्रहण करते हैं । सूक्ष्म आहार होने से जानते हैं परन्तु देखते नहीं हैं । तिर्यंच पंचेन्द्रिय श्रावक '२८८ बोलों से आहार ग्रहण किया जाता है' इत्यादि मति, श्रुत से जानता है व चक्षुरिन्द्रिय से देखता है । परन्तु चित्त विक्षिप्तता व अनाभोगादि कारणों से कोई नहीं जानते हैं तथा अंधे व अन्धकार आदि कारणों से नहीं देखते हैं।
टीकाकार तिर्यंच पंचेन्द्रिय व मनुष्य के लिए प्रक्षेपाहार तो मतिश्रुत से तथा रोमाहार अवधि से जानना कहते हैं। परन्तु रोमाहार के पुद्गल स्थूल हों तो जैसे- पानी से स्नान करना, अनेक प्रकार के मालिश द्रव्यों से मालिश करना रोमाहार है-ऐसे द्रव्यों को मति - श्रुत से भी जानना संभव लगता है । सूक्ष्म रोमाहार के पुद्गल तो अवधि से ही जानते हैं। अतः रोमाहार की अपेक्षा भी अवधि का विषय हो तो यथासंभव चतुर्भंगी घटा लेना चाहिए।
नैरयिकों की तरह वाणव्यंतरों और ज्योतिषी देवों के विषय में समझना चाहिये ।
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वेमाणियाणं पुच्छा ?
गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारेंति ।
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