Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेत्तीसइमं ओहिपयं
तेतीसवां अवधि पद प्रज्ञापना सूत्र के बत्तीसवें पद में संयत आदि का वर्णन करने के पश्चात् सूत्रकार इस तेतीसवें पद में अवधिज्ञान विषयक प्ररूपणा करते हैं। अवधिज्ञान के विषय में यह प्ररूपणा विभिन्न द्वारों के माध्यम से की गई है जिसकी संग्रहणी गाथा इस प्रकार है -
भेय विसयसंठाणे अब्भिंतर बाहिरे य देसोही। ओहिस्स य खयवडी पडिवाई चेव अपडिवाई॥
भावार्थ-अवधिज्ञान के भेद १, विषय २, संस्थान ३, अभ्यंतरावधि ४, बाह्यावधि ५, देशावधि ६, क्षय-हीयमान अवधि ७, वृद्धि-वर्द्धमान अवधि ८, प्रतिपाती ९ और अप्रतिपाती १०, ये तेतीसवें पद के दस द्वार हैं। .
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में तेतीसवें पद के अर्थाधिकारों की प्ररूपणा की गयी है। जिसके दस द्वार इस प्रकार हैं - १. भेद द्वार - प्रथम भेद द्वार में अवधिज्ञान के भेद-प्रभेद की प्ररूपणा की गई है। २. विषय द्वार - अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित क्षेत्र का विषय ३. संस्थान द्वार - अवधिज्ञान के संस्थान (आकार) ४. आभ्यंतर द्वार - आभ्यंतर अवधिज्ञान ५. बाह्य द्वार - बाह्य अवधिज्ञान ६. देश द्वार - देश अवधिज्ञान और सर्व अवधिज्ञान ७. क्षय द्वार - हीयमान अवधिज्ञान ८. वृद्धि द्वार - वर्द्धमान अवधिज्ञान ९. प्रतिपाति द्वार - प्रतिपाति-गिरने के स्वभाव वाला अवधिज्ञान और १०. अप्रतिपाति द्वारअप्रतिपाति-नहीं गिरने वाला-भवपर्यंत स्थिर रहने वाला अवधिज्ञान का निरूपण है। - इन दस द्वारों में से कहीं कहीं चौथे और पांचवें द्वार को, कहीं कहीं सातवें और आठवें द्वार को तथा नौवें और दसवें द्वार को एक ही द्वार में सम्मिलित कर क्रमशः सात द्वारों या आठ द्वारों से भी विषय की प्ररूपणा की गयी है।
१. भेद द्वार . कइविहा णं भंते! ओही पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा ओही पण्णत्ता। तंजहा - भवपच्चइया य खओवसमिया य, दोण्हं भवपच्चइया, तंजहा - देवाण य णेरइयाण य, दोण्हं खओवसमिया, तंजहा - मणूसाणं पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाण य॥६६६॥
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