Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेतीसवां अवधि पद - विषय द्वार
२३५
गोयमा! जहण्णेणं अद्ध गाउयं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति॥
कठिन शब्दार्थ - खेतं - क्षेत्र को, ओहिणा- अवधिज्ञान से, गाउयाई - गव्यूति-गाऊ (कोस)। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जघन्य से आधा गाऊ और उत्कृष्ट से चार गाऊ क्षेत्र को अवधिज्ञान से जानते देखते हैं।
रयणप्पभापुढविणेरइया णं भंते! केवइयं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति?
गोयमा! जहण्णेणं अट्ठाई गाउयाई, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति।
सक्करप्पभापुढविणेरइया जहण्णेणं तिण्णिगाउयाई, उक्कोसेणं अट्ठाइं गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति।
वालुयप्पभापुढविणेरइया जहण्णेणं अड्डाइजाइं गाउयाई, उक्कोसेणं तिणि गाउयाई,ओहिणा जाणंति पासंति। . पंकप्पभापुढविणेरइया जहण्णेणं दोण्णि गाउयाई, उक्कोसेणं अड्डाइजाणं गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति।
धूमप्यभापुढविणेरड्या ज्हण्णेणं दिवटुंगाउयाई, उक्कोसेणं दो गाउयाइं ओहिणा जाणंति पसंति। . _____ तमापुढविणेरड्या जहण्णेणं गाउयं, उक्कोसेणं दिवडं गाउयं ओहिणा जाणंति पासंति।
अहेसत्तमाए पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं अद्ध गाउयं, उक्कोसेणं गाउयं ओहिणा जाणंति पासंति ॥६६७॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक जघन्य साढ़े तीन गाऊ और उत्कृष्ट चार गाऊ क्षेत्र को अवधिज्ञान से जानते देखते हैं।
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