Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२४६
प्रज्ञापना सूत्र
शेष द्वार णेरइयाणं भंते! ओही किं आणुगामिए, अणाणुगाभिए, वड्डमाणए, हीयमाणए, पडिवाई, अप्पडिवाई, अवट्ठिए, अणवहिए?
गोयमा! आणुगामिए, णो अणाणुगामिए, णो वड्डमाणए, णो हीयमाणए णो पडिवाई, अप्पडिवाई, अवट्ठिए, णो अणवट्ठिए एवं जाव थणियकुमाराणं।
पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। ... गोयमा! आणुगामिए वि जाव अणवट्ठिए वि, एवं मणूसाण वि। वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं॥६७३॥
॥पण्णवणाए भगवईए तेत्तीसइमं ओहिपयं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - आणुगामिए - आनुगामिक, अणाणुगामिए - अनानुगामिक, वड्डमाणए - वर्धमान, हीयमाणए - हीयमान, पडिवाई - प्रतिपाती, अप्पडिवाई - अप्रतिपाती, अवट्ठिए - अवस्थित, अणवट्ठिए - अनवस्थित।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों का अवधिज्ञान क्या आनुगामिक होता है, अनानुगामिक होता है, वर्द्धमान होता है, हीयमान होता है, प्रतिपाती होता है, अप्रतिपाती होता है, अवस्थित होता है या अनवस्थित होता है?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों का अवधिज्ञान आनुगामिक होता है किन्तु अनानुगामिक नहीं होता वर्द्धमान, हीयमान, प्रतिपाती और अनवस्थित नहीं होता, अप्रतिपाती और अवस्थित होता है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक समझना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का अवधिज्ञान आनुगामिक होता है आदि पृच्छा? .
उत्तर - हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का अवधिज्ञान आनुगामिक भी होता है यावत् अनवस्थित भी होता है। इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में भी समझना चाहिये।
वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान समझनी चाहिये। विवेचन - आनुगामिक अवधिज्ञान आदि का स्वरूप इस प्रकार है -
१. आनुगामिक (अनुगामी) - जो अवधिज्ञान ज्ञानी के साथ जाता है वह आनुगामिक अवधिज्ञान है। जैसे मनुष्य दीपक को साथ में लेकर चलता है तो प्रकाश उसके साथ-साथ जाता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org