Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
प्रश्न- हे भगवन् ! तीर्थंकर नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! तीर्थंकर नाम कर्म की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तः कोडाकोडी सागरोपम की कही गई है।
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जहाँ जघन्य स्थिति सागरोपम के ु भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है तथा जहाँ जघन्य स्थिति सागरोपम के भाग की है, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का समझना चाहिए।
उच्चा गोयस्स णं पुच्छा ?
गोयमा! जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ता, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससयाई अबाहा।
णीयागोयस्स पुच्छा ?
गोयमा ! जहा अपसत्थविहायोगइणामस्स ॥ ६२४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उच्च गोत्र नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! उच्च गोत्र नाम कर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है।
प्रश्न - हे भगवन् ! नीच गोत्र कर्म की स्थिति विषयक प्रश्न ?
उत्तर - हे गौतम! नीच गोत्र कर्म की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अप्रशस्त विहायोगति नाम कर्म की स्थिति के समान है।
अंतराइए णं पुच्छा ?
गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठिई कम्मणिसेगो ।। ६२५ ॥
भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! अन्तराय कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
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उत्तर
हे गौतम! अन्तराय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म निषेक काल है।
विवेचन आठ कर्मों की सभी उत्तर प्रकृतियों की जघन्य स्थिति, उत्कृष्ट स्थिति, अबाधाकाल और निषेक काल की तालिका इस प्रकार है -
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