Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपर्याप्तक रूप ऐसी सब से जघन्य स्थिति बांधते हैं । हे गौतम! यह आयुष्य कर्म का जघन्य स्थिति
बन्धक है, इससे भिन्न अजघन्य स्थिति का बन्धक है।
में
विवेचन प्रस्तुत सूत्र कर्म के जघन्य स्थिति बंधक का वर्णन किया गया है। दो आयुष्य प्रकार के जीव कहे गये हैं १. सोपक्रम आयुष्य वाले और २. निरुपक्रम आयुष्य वाले। इनमें देव, नैरयिक, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले मनुष्य और तिर्यंच तथा संख्यात वर्ष की आयुष्य होने पर भी चरम शरीरी और उत्तम पुरुष निरुपक्रम आयुष्य वाले होते हैं। शेष सभी जीव सोपक्रम आयुष्य वाले भी होते हैं और निरुपक्रम आयुष्य वाले भी होते हैं। कहा है
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देवा नेरइया वा असंखवासाडया तिरिमणुया ।
उत्तमपुरिसा य तहा चरम सरीखा व निरुवकमा ।
सेसा संसारत्था भइया सोवक्कमा व इयरे वा । सोवक्कम-निरूवक्कमभेओ भणिओ समासेणं ॥
प्रज्ञापना सूत्र
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इनमें देव, नैरयिक तथा असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच और मनुष्य अपने छह माह का आयुष्य शेष रहने पर अवश्य पर भव का आयुष्य बांधते हैं। जो तिर्यंच और मनुष्य संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले होने पर भी निरुपक्रम आयुष्य वाले हैं वे अपने तीसरे भाग का आयुष्य शेष रहने पर अवश्य परभव के आयुष्य का बंध करते हैं। जो सोपक्रम आयुष्य वाले जीव हैं वे कदाचित् तीसरा भाग या तीसरे भाग के तीसरे भाग का आयुष्य बाकी है ऐसे यावत् असंक्षेप्याद्धा प्रविष्ट-जिसका संक्षेप नहीं किया जा सके इतना मात्र आयुष्य काल बांकी है ऐसे जीव परभव का आयुष्य बांधते हैं। असंक्षिप्त अद्धा - काल में प्रविष्ट जीव का आयुष्य सर्व निरुद्ध-उपक्रम के हेतुओं से अति संक्षेप किया हुआ होता है। उसका मात्र आयुष्य बंध करने का काल बाकी है अर्थात् इसके बाद उसका जीवनकाल नहीं है इसी बात को स्पष्टता पूर्वक कहने के लिए कहा है- सेसे सव्वमहंतीए आउय बंधद्धाए - सबसे बड़े आयुष्य बंध के काल का शेष भाग है। तात्पर्य यह है कि आयुष्य बंध का काल आठ आकर्ष प्रमाण है उसका शेष - एक आकर्ष प्रमाण जितना सबसे अल्प आयुष्य उनका शेष है। अतः वह संक्षिप्त नहीं किया जा सके ऐसे काल में प्रविष्ट हुआ और आयुष्य बंध के एक आकर्ष रूप अंतिम (चरम ) काल में वर्तता होता है यहाँ 'चरिमकाल समयंसि' - चरम काल समय का ग्रहण करने से परम सूक्ष्म समय का ग्रहण नहीं करना चाहिये परन्तु ऊपर कहे प्रमाण काल का ग्रहण करना चाहिए क्योंकि उससे कम काल में आयुष्य का बंध असंभव है। इसलिए व्युत्क्रांति पद से पूर्व में कहा है कि - 'हे भगवन्! जीव स्थिति नाम सहित. आयुष्य का कितने आकर्ष से बंध करता है ? हे गौतम! जघन्य एक आकर्ष से और उत्कृष्ट आठ आकर्ष से आयुष्य का बंध करता है।' एक आकर्ष से सर्व जघन्य आयुष्य बांधता है इसीलिए कहा है कि "सव्वं जहण्णियं" - सर्व जघन्य - सबसे छोटी स्थिति बांधता है। वह स्थिति किस प्रकार की है ? इसके लिए कहा है- "पज्जत्तापज्जत्तियं" - पर्याप्तापर्याप्तिकां-पर्याप्तक और
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