Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक क्या साकारोपयुक्त होते हैं या अनाकारोपयुक्त? उत्तर - हे गौतम! नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ?
प्रश्न - हे भगवन्! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिक जीव साकारोपयोग वाले भी होते हैं और अनाकारोपयोग वाले भी होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जो नैरयिक अभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मतिअज्ञान, श्रुत अज्ञान और विभंगज्ञान से युक्त होते हैं वे साकारोपयोग वाले होते हैं और जो नैरयिक चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के उपयोग वाले होते हैं वे अनाकारोपयोग युक्त होते हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोंपयोग वाले भी होते हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक समझना चाहिये।
पुढविकाइयाणं पुच्छा?
गोयमा! तहेव जाव जेणं पुढविकाइया मइअण्णाणसुयअण्णाणोवउत्ता तेणं पुढविकाइया सागारोवउत्ता, जेणं पुढविकाइया अचक्खुदंसणोवउत्ता तेणं पुढविकाइया अणागारोवउत्ता, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव वणस्सइकाइया।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के उपयोग कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के उपयोग दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - साकारोपयोग और अनाकारोपयोग। जो पृथ्वीकायिक जीव मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान के उपयोग वाले होते हैं वे साकारोपयोग वाले हैं तथा जो पृथ्वीकायिक जीव अचक्षुदर्शन के उपयोग वाले होते हैं वे अनाकारोपयुक्त होते हैं। इस कारण से हे गौतम! इस प्रकार कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव साकार उपयोग वाले भी होते हैं और अनाकार उपयोग वाले भी होते हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना चाहिये।
बेइंदियाणं भंते! अट्ठसहिया तहेव पुच्छा?
गोयमा! जाव जेणं बेइंदिया आभिणिबोहियणाणसुयणाण मइअण्णाणसुयअण्णाणोवउत्ता तेणं बेइंदिया सागारोवउत्ता, जेणं बेइंदिया अचक्खुदंसणोवउत्ता तेणं बेइंदिया अणागारोवउत्ता, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ०।एवं जाव चउरिदिया, णवरं चक्खुदंसणं अब्भहियं चउरिदियाणं ति।
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