Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
वक्तव्यता समुच्चय जीवों के समान जाननी चाहिये। शेष सभी जीवों की पश्यत्ता संबंधी कथन नैरयिकों के समान कहना चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जीव और चौबीस दण्डकों में पश्यत्ता के भेद प्रभेदों की प्ररूपणा की गयी है।
जीवा णं भंते! किं सागारपस्सी, अणागारपस्सी? गोयमा! जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि'?
गोयमा! जेणं जीवा सुयणाणी ओहिणाणी मणपजवणाणी केवलणाणी सुयअण्णाणी विभंगणाणी तेणं जीवा सागारपस्सी, जेणं जीवा चक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदंसणी तेणं जीवा अणागारपस्सी, से एएणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-'जीवा सागारपस्सी वि अणागारपस्सी वि'। ___कठिन शब्दार्थ - सागारपस्सी - साकारदर्शी-साकार पश्यत्ता वाला, अणागारपस्सी - अनाकारदर्शी-अनाकार पश्यत्ता वाला।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव क्या साकारदर्शी-साकार पश्यत्ता वाले हैं या अनाकारदर्शीअनाकार पश्यत्ता वाले हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जीव साकार पश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकार पश्यत्ता वाले भी होते हैं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! आप किस कारण से ऐसा कहते हैं कि जीव साकार पश्यत्ता वाले भी हैं और अनाकार पश्यत्ता वाले भी हैं ? .
उत्तर - हे गौतम! जो जीव श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी, श्रुत अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं वे साकार पश्यत्ता वाले होते हैं और जो जीव चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी हैं वे अनाकार पश्यत्ता वाले होते हैं। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि जीव साकार पश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकार पश्यत्ता वाले भी होते हैं।
विवेचन - जो साकार पश्यत्ता से युक्त होते हैं वे साकारदर्शी अथवा साकार पश्यत्ता वाले कहलाते हैं। समुच्चय जीवों में जो जीव श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी या केवलज्ञानी हैं अथवा श्रुत अज्ञानी या विभंगज्ञानी हैं वे साकारपश्यत्ता वाले हैं। जो जीव अनाकार पश्यत्ता से युक्त होते हैं वे अनाकारदर्शी अथवा अनाकार पश्यत्ता वाले कहलाते हैं। समुच्चय जीवों में जो जीव चक्षुदर्शनी अवधिदर्शनी तथा केवलदर्शनी हैं वे अनाकार पश्यत्ता वाले हैं।
आगम के मूल पाठ में पहले गुण अर्थात् पश्यत्ता की पृच्छा करने के बाद गुणों की पृच्छा (क्या
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