Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीसइमं पासणया पयं
तीसवां पश्यत्ता पद
प्रज्ञापना सूत्र के उनतीसवें पद में ज्ञान के परिणाम विशेष रूप उपयोग का कथन किया गया है। अब इस तीसवें पद में भी ज्ञान के ही परिणाम विशेष रूप पश्यत्ता का वर्णन किया जाता है, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
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कइविहा णं भंते! पासणया पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पासणया पण्णत्ता । तंजहा
पासणया य ।
कठिन शब्दार्थ- पासणया
पश्यत्ता।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पश्यत्ता कितने प्रकार की कही गई हैं?
उत्तर - हे गौतम! पश्यत्ता दो प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है १. साकार पश्यत्ता
सागारपासणया, अणागार
और २. अनाकार पश्यत्ता।
विवेचन - 'पश्यत्ता' शब्द दृशिर देखना धातु से बना है किन्तु रुढिवश पश्यत्ता शब्द उपयोग की तरह साकार और अनाकार बोध का प्रतिपादक है। त्रैकालिक अथवा स्पष्ट दर्शन रूप बोध को पश्यत्ता कहते हैं। पश्यत्ता के दो भेद हैं १. साकार पश्यत्ता और २. अनाकार पश्यत्ता। विशेष रूप से और स्पष्ट रूप से त्रैकालिक (तीनों काल विषयक) ज्ञान साकार पश्यत्ता हैं तथा त्रैकालिक और स्पष्ट रूप से देखना अनाकार पश्यत्ता है।
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सागारपासणया णं भंते! कइविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! छव्विहा पण्णत्ता, तंजहा सुयणाणपासणया, ओहिणाणपासणया, मणपज्जवणाणपासणया, केवलणाणपासणया, सुयअण्णाणसागारपासणया, विभंगणाणसागारपासणया ।
भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! साकार पश्यत्ता कितने प्रकार की कही गई है ?
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उत्तर - हे गौतम! साकार पश्यत्ता छह प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार है - १. श्रुतज्ञान पश्यत्ता २. अवधिज्ञान पश्यत्ता ३ मनः पर्यवज्ञान पश्यत्ता ४. केवलज्ञान पश्यत्ता ५. श्रुतअज्ञान पश्यत्ता और ६. विभंगज्ञान पश्यत्ता।
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