Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
हंता गोयमा ! णेरइया सव्वओ आहारेंति एवं तं चेव जाव आहच्च णीससंति ॥६४२॥
कठिन शब्दार्थ - सव्वओ - सर्वतः-सर्वात्मा से - सभी आत्म प्रदेशों से, अभिक्खणं- बार-बार, आहच्च - कदाचित, परिणामेति - परिणमाते हैं-पचाते हैं। ___भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्या नैरयिक १. सर्वतः (सर्वात्मा से) आहार करते हैं २. सर्वतः परिणमाते हैं ३. सर्वतः उच्छ्वास लेते हैं ४. सर्वतः निःश्वास छोड़ते हैं ५. बार-बार आहार करते हैं ६. बार-बार परिणमाते हैं ७. बार-बार उच्छ्वास लेते हैं ८. बार बार निःश्वास छोड़ते हैं ९. कदाचित् आहार करते हैं १०. कदाचित् परिणमाते हैं ११. कदाचित् उच्छ्वास लेते हैं १२. कदाचित् निःश्वास छोड़ते हैं?
उत्तर - हाँ गौतम! नैरयिक सर्वतः-सर्वात्मा से आहार करते हैं इसी प्रकार यावत् कदाचित् निःश्वास छोड़ते हैं। अर्थात् नैरयिक ये बारह बोल करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में क्या नैरयिक सभी आत्म-प्रदेशों से आहार करते हैं ? इस विषय में बारह बोल कहे हैं। इनमें से १ से ४ बोल अनाभोग आहार की अपेक्षा से है।५ से ८ बोल पर्याप्ता की अपेक्षा से है। ९ से १२ बोल अपर्याप्ता की अपेक्षा से है। यह पांचवां द्वार हुआ।
णेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति ते णं तेसिं पोग्गलाणं सेयालंसि कहभागं आहारेंति, कहभागं आसाएंति?
गोयमा! असंखिजइभागं आहारेंति, अणंतभागं आसाएंति। कठिन शब्दार्थ- सेयालंसि - भविष्य काल में। . .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों का भविष्य काल में कितने भाग का आहार करते हैं और कितने भाग का आस्वाद करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं उन पुद्गलों का आगामी काल में असंख्यातवें भाग का आहार करते हैं और अनन्तवें भाग़ का आस्वादन करते हैं।
विवेचन - नैरयिक आहार रूप में ग्रहण किये हुए सभी पुद्गलों का आहार नहीं करते और आस्वादन नहीं करते किन्तु उनके असंख्यातवें भाग का आहार करते हैं और अनन्तवें भाग का आस्वाद करते हैं। जिन पुद्गलों का आहार नहीं करते वे पुद्गल बिना आहार किये नष्ट हो जाते हैं। जैसे गाय आदि घास का मोटा कवल लेते हैं किन्तु उसमें से कुछ गिर जाता है। आहार किये हुए जिन पुद्गलों का आस्वाद नहीं करते वे बिना आस्वाद किये ही शरीर रूप में परिणत हो जाते हैं। छठा द्वार पूर्ण हुआ।
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