Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अट्ठाईसवाँ आहार पद - प्रथम उद्देशक - आहारार्थी आदि द्वार
१७३
गोयमा! ते णं पोग्गला घाणिंदियजिभिंदियफासिंदियवेमायत्ताए तेसिं भुजोभुजो परिणमंति। चउरिदियाणं चक्खिदियघाणिंदियजिब्भिंदियफासिंदियवेमायत्ताए तेसिं भुजो भुजो परिणमंति, सेसं जहा तेइंदियाणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तेंइन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल किस रूप में पुनः पुनः परिणत होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे पुद्गल घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शन्द्रिय की विमात्रा से पुनः पुनः परिणत होते हैं। चतुरिन्द्रिय द्वारा आहार के रूप में ग्रहण किये गये पुद्गल चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शन्द्रिय की विमात्रा से पुनः पुनः परिणत होते हैं। शेष वर्णन तेइन्द्रियों के समान समझना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तीन विकेलन्द्रियों के आहार के विषय में स्पष्टीकरण किया गया है।
पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा तेइंदियाणं, णवरं तत्थ णं जे से आभोगणिव्वत्तिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जा। . पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! जे पोग्गला आहारत्ताए-पुच्छा?
गोयमा! सोइंदियचक्विंदियघाणिंदियजिब्भिंदियफासिंदियवेमायत्ताए तेसिं भुजो भुजो परिणमंति। . भावार्थ - पंचेन्द्रियतिथंचों का कथन तेइन्द्रिय जीवों के समान समझना चाहिए। विशेषता यह है कि उनमें जो आभोगनिवर्तित आहार है, उस आहार की अभिलाषा जघन्य अन्तर्मुहूर्त से उत्कृष्ट षष्ठ भक्त से उत्पन्न होती है।
. प्रश्न - हे भगवन्! पंचेन्द्रिय तिथंच जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल उनमें किस रूप में पुनः पुनः परिणत होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे पुद्गल श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की विमात्रा से पुनः पुनः परिणत होते हैं।
विवेचन - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों को आभोग निर्वर्तित आहार की इच्छा जघन्य अन्तर्मुहूर्त में उत्कृष्ट षष्ठ भक्त में (दो दिन के बाद) होती हैं। यह कथन देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्र के तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा समझना चाहिये।
मणूसा एवं चेव णवरं आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तस्स उक्कोसेणं
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