Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
कठिन शब्दार्थ - पुव्वभावपण्णवणं - पूर्व भाव प्रज्ञापना-अतीतकालीन पर्यायों की प्ररूपणा, पडुप्पण्णभावपण्णवणं - प्रत्युत्पन्न भाव प्रज्ञापना-वर्तमान कालिक भाव की प्ररूपणा।
भावार्थ - प्रश्न- हे भगवन् ! क्या नैरयिक एकेन्द्रिय शरीरों का यावत् पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिक पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा एकेन्द्रिय शरीरों का भी आहार करते हैं यावत् पंचेन्द्रिय शरीरों का भी आहार करते हैं। प्रत्युत्पन्नभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा वे नियमा पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक समझना चाहिए। ..
विवेचन - नैरयिक पूर्वभाव की प्रज्ञापना-प्ररूपणा की अपेक्षा एकेन्द्रिय के शरीर का भी आहार करते हैं यावत् शब्द से बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय के शरीरों का ग्रहण करना चाहिए तथा पंचेन्द्रिय शरीरों का भी आहार करते हैं। यहाँ आशय यह है कि जब आहार रूप में ग्रहण किये जाते पुद्गलों के अतीत-भूतकाल के भाव-परिणाम का विचार करते हैं तब कोई. एकेन्द्रिय शरीर रूप में परिणत, कदाचित् बेइन्द्रिय शरीर रूप में परिणत, कदाचित् तेइन्द्रिय शरीर रूप में परिणत, कदाचित् चउरिन्द्रिय शरीर रूप में परिणत और कदाचित् पंचेन्द्रिय शरीर रूप में परिणत हुए थे अतः जब भूतकाल के परिणाम का वर्तमान में आरोप करके विवक्षा करते हैं तब नैरयिक, एकेन्द्रिय के शरीरों का भी यावत् पंचेन्द्रिय के शरीरों का भी आहार करते हैं। .
'पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च' - प्रत्युत्पन्न-वर्तमान भाव की प्रज्ञापना-प्ररूपणा की अपेक्षा नैरयिक नियमा पंचेन्द्रिय शरीर का आहार करते हैं। यह ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा समझना चाहिए क्योंकि ऋजुसूत्र नय वर्तमान काल के भावों की ही प्ररूपणा करता है। ऋजुसूत्र नय जिसका आहार किया जाता है उसका आहार किया हुआ और परिणमन होते हुए को परिणत हुआ मानता है। आहार किये जाते पुद्गल वे कहे जाते हैं जो स्व शरीर रूप में परिणत होते हैं। नैरयिकों का स्व शरीर पंचेन्द्रिय शरीर है और पंचेन्द्रिय शरीर होने से वे अवश्य पंचेन्द्रिय शरीर का आहार करते हैं। अर्थात् वर्तमान में नैरयिक का पंचेन्द्रिय शरीर है और आहार रूप में ग्रहण किये हुए पुद्गल पंचेन्द्रिय शरीर रूप में परिणत होते हैं इसलिए वे पुद्गल भी पंचेन्द्रिय शरीर कहलाते हैं।
पुढविकाइयाणं पुच्छा?
गोयमा! पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा एगिंदियसरीराइं आहारैति। बेइंदिया पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा बेइंदियाणं सरीराइं आहारेंति, एवं जाव
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