Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
अट्ठमभत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ।.वाणमंतरा जहा णागकुमारा, एवं जोइसिया वि णवरं आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं दिवसपुहत्तस्स, उक्कोसेणं दिवसपुहत्तस्स आहारट्टे समुप्पजइ। एवं वेमाणिया वि, णवरं आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं दिवसपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पजइ, सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव ते तेसिं भुजो भुजो परिणमंति।
भावार्थ - मनुष्यों का आहार संबंधी कथन भी इसी प्रकार है। विशेषता यह है कि उनको आभोगनिर्वर्तित आहार की इच्छा जघन्य अन्तर्मुहूर्त में और उत्कृष्ट अष्टमभक्त होने पर उत्पन्न होती है। वाणव्यंतर देवों की आहार संबंधी वक्तव्यता नागकुमारों के समान समझना चाहिये। इसी प्रकार ज्योतिषियों का भी कथन है किन्तु विशेषता यह है कि उन्हें आभोगनिर्वर्तित आहार की अभिलाषा जघन्य दिवस पृथक्त्व में और उत्कृष्ट भी दिवस पृथक्त्व में उत्पन्न होती है। इसी प्रकार वैमानिक देवों का आहार संबंधी कथन है। विशेषता यह है कि इनको आभोगनिवर्तित आहार की अभिलाषा जघन्य दिवस पृथक्त्व में और उत्कृष्ट तेतीस हजार वर्षों में उत्पन्न होती है शेष सारा कथन असुरकुमारों के समान यावत् उन पुद्गलों का बार-बार परिणमन होता है तक कह देना चाहिये।
विवेचन - मनुष्यों को आभोगनिर्वर्तित आहार की अभिलाषा उत्कृष्ट अष्टम भक्त-तीन दिवस व्यतीत होने पर होती है यह कथन देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्यों की अपेक्षा समझना चाहिए। ज्योतिषी देवों को जघन्य दिवस पृथक्त्व/अनेक दिन (कम से कम दो उत्कृष्ट प्रसंगानुसार) और उत्कृष्ट भी दिवस पृथक्त्व व्यतीत होने पर आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। ज्योतिषियों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग होती है इसलिए उन्हें जघन्य भी दिवस पृथक्त्व व्यतीत होने पर पुनः आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। वैमानिक देवों में आभोगनिर्वर्तित आहार इच्छा पूर्वक आहार जघन्य दिवस पृथक्त्व में होता है वह पल्योपम आदि के आयुष्य वालों के लिए समझना चाहिए, उत्कृष्ट ३३ हजार वर्षों में आहार की इच्छा होती है। यह अनुत्तर विमानवासी देवों की अपेक्षा समझना चाहिये।
जिन देवों की जितने सागरोपम की स्थिति होती है उतने हजार वर्ष व्यतीत होने पर उन्हें आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
सोहम्मे आभोगणिव्वत्तिए जहण्णणं दिवसपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं दोण्हं वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पजइ।
ईसाणे णं पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं दिवसपुहुत्तस्स साइरेगस्स, उक्कोसेणं साइरेगं दोण्हं वाससहस्साणं।
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