Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अट्ठाईसा आहार पद - प्रथम उद्देशक - आहारार्थी आदि द्वार
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गोयमा! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाई पि आहारेंति जाव पंचवण्णाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालवण्णाई पि आहारैति जाव सुक्किल्लाइं पि आहारेंति।
जाइं० वण्णओ कालवण्णाई आहारेंति ताई किं एगगुणकालाई आहारेंति जाव दसगुणकालाई आहारॅति, संखिजगुणकालाइं, असंखिजगुणकालाई, अणंतगुणकालाई आहारेंति?
गोयमा! एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाई पि आहारैति, एवं जाव सुक्किल्लाइं वि। एवं गंधओ वि रसओ वि।
कठिन शब्दार्थ - ठाणमग्गणं - स्थान मार्गणा, विहाणमग्गणं - विधान मार्गणा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! भाव से नैरयिक वर्ण वाले जिन पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एक वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं यावत् क्या वे पांच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे स्थान मार्गणा की अपेक्षा से एक वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् पांच वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं तथा विधान मार्गणा की अपेक्षा से काले वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् शुक्ल (श्वेत) वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! वे वर्ण से जिन काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, क्या वे एक गुण काले पुद्गलों का आहार करते हैं यावत् दस गुण काले पुद्गलों का आहार करते हैं, संख्यात गुण काले, असंख्यात गुण काले या अनन्त गुण काले वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! वे एक गुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं। इसी प्रकार यावत् शुक्लवर्ण वाले पुद्गलों के विषय में भी समझना चाहिये। इसी प्रकार गन्ध और रस की अपेक्षा भी समझना चाहिए।
विवेचन - स्थान मार्गणा - आहार आदि में जीव जिन पुद्गल स्कन्धों को ग्रहण करता है उन सभी स्कन्धों में समुच्चय (सामान्य) रूप से वर्णादि की पृच्छा करना।
विधान मार्गणा - ग्रहण किये गये स्कन्धों में से प्रत्येक स्कन्धों में अलग-अलग वर्णादि की पृच्छा करना।
जाई भावओ फासमंताई आहारेंति ताई णो एगफासाइं आहारेंति, णो दुफासाई आहारैति, णो तिफासाइं आहारेंति, चउफासाइं पि आहारेंति जाव अट्ठफासाइं पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाई पि आहारेंति जाव लुक्खाई।
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