Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्ताईसवां कर्मवेद वेदक पद
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ जीव कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है ?
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उत्तर - हे गौतम! मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ जीव नियम से आठ कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है। इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक आठ कर्म प्रकृतियों का वेदन होता है इसी प्रकार बहुवचन की अपेक्षा से भी समझना चाहिये।
विवेचन - समुच्चय एक जीव तथा बहुत जीव मोहनीय कर्म वेदते हुए नियम पूर्वक आठ कर्म वेदते हैं। इसी तरह नैरयिक आदि २४ दंडक के एक जीव और बहुत जीव मोहनीय कर्म वेदते हुए नियम पूर्वक आठ कर्म वेदते हैं।
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इस प्रकार आगम में तो इन चार पदों की मिलाकर कुल १७०० पृच्छायें हैं । २५ तो समुच्चय कर्म प्रकृतियों की, एक एक पद में ४०० पृच्छायें ( २४ दंडक एवं समुच्चय जीव के आठ कर्म बांधने या वेदने की एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा से २५८x२= ४०० ) इस प्रकार एक-एक पद में ४२५ (२५+४००) पृच्छाएं हैं। चारों की मिलाकर १७०० पृच्छाएं होती हैं। थोकड़े वाले मात्र बहुवचन की पृच्छाओं (प्रश्नोत्तरों) को ही गिनकर आठ सौ बोलों की बन्धी कहते हैं। क्योंकि मुख्य रूप से भांगे (३-९-२७ आदि) तो बहुवचन में ही होते हैं।
॥ प्रज्ञापना भगवती सूत्र का सत्ताईसवाँ कर्म वेद वेदक पद सम्पूर्ण ॥
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