Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चउवीसइमं कम्मबंधपयं चौबीसवां कर्मबंध पद
प्रज्ञापना सूत्र के तेइसवें कर्म प्रकृति पद में कर्म बन्ध आदि रूप परिणाम विशेष का कथन किया गया है। उसी कर्म बंध आदि परिणाम का आगे के चार पदों में कुछ विशेषता के साथ वर्णन किया जायेगा। उसमें चौबीसवें पद का प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं -
कइणं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? ... गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। तंजहा-णाणावरणिजं जाव अंतराइयं। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! कर्म-प्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं? ..
उत्तर - हे गौतम! कर्म-प्रकृतियाँ आठ कही गई हैं? वे इस प्रकार है - ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक के आठ कर्म प्रकृतियाँ हैं।
जीवे णं भंते! णाणावरणिज कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? गोयमा! सत्तविहबंधए पा अट्टविहबंधए वा छबिहबंधए वा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधता है?
उत्तर - हे गौतम! जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों का बांधता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में समुच्चय जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ अन्य कितनी कर्म प्रकृतियों का बंधक होता है, इसका कथन किया गया है। जीव जब ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध करता है तब यदि आयुष्य कर्म का बंध नहीं करे तो सात कर्म प्रकृतियाँ बांधता है, यदि आयुष्य बंध करे तो आठ कर्म प्रकृतियां बांधता है और जब मोहनीय कर्म और आयुष्य कर्म दोनों का बन्ध नहीं करता तब छह कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है ऐसे जीव सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवर्ती होते हैं। कहा भी है - .
सत्तविह बंधगा होति पाणिणो आउगवज्जगाणं तु। तह सुहम संपराया छविहबंधा विणिहिट्ठा। मोहाउय वजाणं पयडीणं ते उ बंधगा भणिया।
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