Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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Salalalakat
प्रज्ञापना सूत्र
बहुत जीवों की अपेक्षा सभी सात के या बहुत आठ के, बहुत एक के, कोई एक छह कर्म के बंधक होते हैं अथवा बहुत सात कर्म के, बहुत आठ कर्म के, बहुत एक कर्म के और बहुत छह कर्म के बंधक होते हैं। शेष वर्णन नैरयिकों से वैमानिक पर्यंत ज्ञानावरणीय कर्म बंध के समान समझ लेना चाहिए। बहुत मनुष्य वेदनीय कर्म बांधते हुए ७, ८, ६ अथवा १ कर्म बांधते हैं । ७ व १ कर्म बांधने वाले शाश्वत हैं । ८ और ६ कर्म बांधने वाले अशाश्वत हैं। इनके नौ भंग होते हैं १ असंयोगों, ४ दो संयोगी, ४ तीन संयोगी यथा - १. सभी सात और एक कर्म बांधने वाले २. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, आठ कर्म बांधने वाला एक ३. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, आठ कर्म बांधने वाले बहुत ४ सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाला एक ५. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाले बहुत ६. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, आठ कर्म बांधने वाला एक छह कर्म बांधने वाला एक ७. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, आठ कर्म बांधने वाला एक, छह कर्म बांधने वाले बहुत ८. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाला एक ९. सात और एक कर्म बांधने वाले बहुत, आठ कर्म बांधने वाले बहुत, छह कर्म बांधने वाले बहुत ।
मोहणिज्जं० बंधमाणे जीवे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ?
गोयमा ! जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। जीवेगिंदिया सत्तविहबंधगा वि अट्ठविहबंधगा वि ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मोहनीय कर्म बांधता जीव कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधता है ? उत्तर - हे गौतम! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना चाहिए। जीव और एकेन्द्रिय सात कर्म बांधने वाले भी होते हैं और आठ कर्म बांधने वाले भी होते हैं ।
विवेचन - मोहनीय कर्म बांधता हुआ समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय सात या आठ कर्म के बंध होते हैं। मोहनीय कर्म बान्धने वाला छह कर्म प्रकृतियों का बंधक नहीं हो सकता क्योंकि छह कर्मों का बन्ध सूक्ष्म संपराय नामक दसवें गुणस्थान में होता हैं जबकि मोहनीय कर्म का बंध नौवें गुणस्थान तक ही होता है। शेष जीवों में सात कर्म बांधने वाले शाश्वत होते हैं और आठ कर्म बांधने वाले अशाश्वत होते हैं अतः उनमें तीन भंग होते हैं।
जीवे णं भंते! आउयं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ ?
गोयमा! णियमा अट्ठ, एवं णेरइए जाव वेमाणिए । एवं पुहुत्तेण वि ।
भावार्थ प्रश्न हे भगवन्! आयुष्य कर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्म प्रकृतियों को
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बांधता है ?
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