Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
की और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। दर्शनावरण चतुष्क का बंधकाल ज्ञानावरणीय कर्म के समान समझना चाहिये।
सायावेयणिजस्स जहा ओहिया ठिई भणिया तहेव भाणियव्वा, इरियावहियबंधयं पडुच्च संपराइयबंधयं च। असायावेयणिजस्स जहा णिहापंचगस्स।
भावार्थ - सातावेदनीय कर्म की स्थिति औधिक (सामान्य) वेदनीय कर्म की स्थिति के अनुसार, ईर्यापथिक. (योगनिमित्तक) बन्ध और सांपरायिक (काषायिक) बन्ध की अपेक्षा कहनी चाहिए। असाता वेदनीय कर्म की स्थिति निद्रा पंचक की स्थिति के समान समझनी चाहिए। __सम्मत्तवेयणिजस्स सम्मामिच्छत्तवेयणिजस्स जा ओहिया ठिई भणिया तं बंधंति। मिच्छत्तवेयणिजस्स जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं सत्तर सायरोवमकोडाकोडीओ, सत्तरिय वाससहस्साइं अबाहा। कसायबारसगस्स जहण्णेणं एवं चेवे, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवम-कोडाकोडीओ, चत्तालीस य वाससयाई अबाहा। कोहमाणमायालोभसंजलणाए य दो मासा, मासो, अद्धामासो, अंतोमुहत्तो, एवं जहण्णगं, उक्कोसगं पुण जहा कसायबारसगस्स।
., भावार्थ - संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव सम्यक्त्व वेदनीय और सम्यक्त्व-मिथ्यात्व वेदनीय की औधिक स्थिति के अनुसार बंध करते हैं। मिथ्यात्व वेदनीय का जघन्य अन्तःकोडाकोडी सागरोपम का उत्कृष्ट । ७० कोडाकोड़ी सागरोपम का बन्ध करते हैं। अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है। ... बारह कषायों की स्थिति जघन्य अन्तः कोडाकोड़ी और उत्कृष्ट चालीस कोडाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है। इनका अबाधाकाल चार हजार वर्ष का है। संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ का जघन्य स्थिति बन्ध क्रमशः दो मास, एक मास, अर्द्ध मास और अन्तर्मुहूर्त का है तथा उत्कृष्ट बन्ध बारह कषायों के बन्ध के समान होता है।
चउण्ह वि आउयाणं जा ओहिया ठिई भणिया तं बंधंति।
आहारगसरीरस्स तित्थगरणामाए य जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ बंधंति।
भावार्थ - संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार की आयुष्य (नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु) कर्म की जो सामान्य (औधिक) स्थिति कही गई है, उसी के अनुसार बंध करते हैं। आहारक शरीर और तीर्थकरनाम कर्म की स्थिति जघन्य अन्त:कोटाकोटि सागरोपम और उत्कृष्ट अन्तः कोटाकोटी सागरोपम की है।
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