Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेवीसइमं कम्मपगडिपयं : पढमो उद्देसओ
तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद : प्रथम उद्देशक
प्रज्ञापना सूत्र के बाईसवें क्रिया पद में नरक आदि गति के परिणाम से परिणत हुए जीवों के प्राणातिपात आदि क्रिया विशेष का विचार किया गया है। इस तेईसवें पद में कर्म बन्ध आदि परिणाम विशेष का विचार किया जाता है। उसमें पांच अधिकारों का प्रतिपादन करने वाली गाथा इस प्रकार हैंकइ पगडी कह बंधड़ कइहि वि ठाणेहिं बंधए जीवो ।
कइ वेइ य पगडी अणुभावो कइविहो कस्स ॥
कठिन शब्दार्थ- पगडी - प्रकृति, बंधइ - बांधता है, वेएइ - वेदन करता है, अणुभावो - अनुभाव ।
भावार्थ - १. कर्म प्रकृतियाँ कितनी हैं ? २. किस प्रकार बंधती हैं ? ३. जीव कितने स्थानों से कर्म बांधता है ? ४, कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है ? ५. किस कर्म का अनुभाव कितने प्रकार,,, का होता है ? इस प्रकार ये पांच द्वार इस उद्देशक में कहे जायेंगे। प्रथम द्वार का निरूपण करने के लिए सूत्रकार फरमाते हैं -
१. प्रथम द्वार
कर्म प्रकृतियों के नाम और अर्थ
कइ णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। तंजहा - णाणावरणिज्जं १, दंसणावरणिजं २, वेयणिज्जं ३, मोहणिज्जं ४, आउयं ५, णामं ६, गोयं ७, अंतराइयं ८ ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई वे इस प्रकार हैं दर्शनावरणीय ३. वेदनीय ४. मोहनीय ५. आयु ६. नाम ७. गोत्र और ८. अन्तराय । रइयाणं भंते! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा ! एवं चेव, एवं जाव वेमाणियाणं १ ॥ ५९८ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्म प्रकृतियाँ कही गई है ?
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१. ज्ञानावरणीय २.
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