Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
आणुपुव्वीणामे चडव्विहे पण्णत्ते । तंजहा
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देवाणुपव्वीणामे ।
भावार्थ - आनुपूर्वी नाम कर्म चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है आनुपूर्वी नाम यावत् देवानुपूर्वी नाम |
विवेचन - आनुपूर्वी नाम कर्म बैल की नाथ के समान है। जैसे इधर उधर जाते हुए बैल को नाथ (नाक में डाली हुई डोरी ) के द्वारा खींच कर यथा स्थान ले जाया जाता है उसी प्रकार विग्रह गति द्वारा इधर उधर जाते हुए जीव को जबर्दस्ती खींच कर आनुपूर्वी नाम कर्म उसी गति में ले जाता है जिस गति की आयु उसने बांध रखी है। आनुपूर्वी नाम कर्म चार प्रकार का कहा गया है
१. नैरयिकानुपूर्वी - जिस कर्म से जीव को जबरदस्ती से नरक गति में ले जाया जाता है उसे नैरयिकानुपूर्वी कहते हैं ।
णेरइयआणुपुव्वीणामे जाव
२. तिर्यंचानुपूर्वी दूसरी गति में जाते हुए जीव को जो जबरदस्ती खींचकर तिर्यंच गति में ले जावे उसे तिर्यंचानुपूर्वी कहते हैं ।
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नैरयिक
३. मनुष्यानुपूर्वी - जिस कर्म के उदय से मनुष्य की आनुपूर्वी मिले उसे मनुष्यानुपूर्वी कहते हैं । जैसे इस भव में जो जीव आगे के लिए मनुष्य गति में जन्म लेने का कर्म बांध चुका है परन्तु मरणकाल में वह इस शरीर को छोड़ कर विग्रह गति द्वारा दूसरी गति में जाने लगता है, तो मनुष्यानुपूर्वी नाम कर्म जबरदस्ती से खींच कर मनुष्य गति में ले जाता है उसको मनुष्यानुपूर्वी कहते हैं ।
४. देवानुपूर्वी - जिस कर्म के उदय से जीव को देवता की आनुपूर्वी प्राप्त हो, उसे देवानुपूर्वी कहते हैं ।
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उस्सारणामे एगागारे पण्णत्ते । सेसाणि सव्वाणि एगागाराई पण्णत्ताइं जाव तित्थगरणामे । णवरं विहायगइणामे दुविहे पण्णत्ते । तंजहा - पसत्थविहायगइणामे य, अपसत्थविहायगइणामे य ॥ ६१५ ॥
भावार्थ - उच्छ्वास नाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है। शेष सब यावत् तीर्थंकर नाम कर्म तक एक-एक प्रकार के कहे गये हैं। विशेषता यह है कि विहायोगति नाम कर्म दो प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार है - १. प्रशस्त विहायोगति नाम और २. अप्रशस्त विहायोगति नाम ।
विवेचन - जिसके उदय से जीव को उच्छ्वास और निःश्वास की लब्धि प्राप्त होती है उसे उच्छ्वास नाम कहते हैं।
शंका- यदि ऐसा है तो फिर उच्छ्वास पर्याप्ति नाम कर्म का क्या उपयोग है ? समाधान - उच्छ्वास नाम कर्म के उदय से उच्छ्वास और निःश्वास योग्य पुद्गलों को ग्रहण
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