Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
९८
प्रज्ञापना सूत्र
प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यंचायु की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम करोड़ पूर्व के तीसरे भाग अधिक की है। इसी प्रकार मनुष्यायु की स्थिति के विषय में भी समझना चाहिए। देवायु की स्थिति नैरयिकायु की स्थिति के समान समझनी चाहिए। _ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चार गतियों के आयुष्य की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति का कथन किया गया है। तिर्यंचायुष्य और मनुष्यायुष्य की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम करोड़ पूर्व के तीसरे भाग अधिक कही है, यह आयुष्य बंध करने वाले करोड़ पूर्व वर्ष की आयुष्य वाले मनुष्यों और तिर्यंचों की अपेक्षा समझनी चाहिए।
णिरयगइणामए णं पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्सदो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीसं वाससयाइं अबाहा०।
तिरियगइणामए जहा णपुंसगवेयस्स। मणुयगइणामए णं पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णस्स सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरसंवाससंयाइं अबाहा०।
देवगइणामए णं पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं जहा पुरिसवेयस्स।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! नरक गति-नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! नरक गति नाम कर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम के २ भाग की है और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। तिर्यंच गति नाम कर्म की स्थिति नपुंसक वेद की स्थिति के समान है।
प्रश्न - हे भगवन्! मनुष्य गति नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्य गति नाम कर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के - भाग की है और उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org