Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ
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उत्तर - हे गौतम! हास्य और रति की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के - भाग (एक सप्तांश सागरोपम) की है और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है तथा इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है। कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म निषेक काल है। .
प्रश्न - हे भगवन् ! अरति, भय, शोक और दुगुंछा (जुगुप्सा) मोहनीय कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अरति, भय, शोक और जुगुप्सा की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के - भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इनका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार), वर्ष का है। कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म निषेक काल है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नौ कषाय के भेदों की पृथक्-पृथक् कर्म स्थिति, अबाधाकाल और निषेक काल का कथन किया गया है। कर्म प्रकृतियों की जो उत्कृष्ट स्थिति है उसको सित्तर कोटाकोटी प्रमाण मिथ्यात्व की स्थिति से भाग देने पर जो स्थिति आती है उससे पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम जघन्य स्थिति होती है। जैसे नपुंसक वेद की उत्कृष्ट स्थिति २० कोडाकोडी सागरोपम की है उसमें ७० कोडाकोडी सागरोपम का भाग देने पर ३. सागरोपम (दो सप्तांश सागरोपम) आता है इससे पल्योपम के असंख्यातवें भाग न्यून नपुंसक वेद की जघन्य स्थिति होती है।
रइयाउयस्स णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्बकोडीतिभागमभहियाई।
तिरिक्खजोणियाउयस्स पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडितिभागमभहियाइं। एवं मणूसाउयस्स वि।
देवाउयस्स जहा णेरइयाउयस्स ठिइत्ति॥६२२॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकायु की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकायु की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष अन्तर्मुहूर्त अधिक की है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम करोड़ पूर्व के तृतीय भाग अधिक की है।
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