Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ
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विवेचन - रस्यते-आस्वाद्यते - जिसका आस्वाद किया जाता है वह रस है। तिक्त-तीखा कटुक-कड़वा, कषाय-कषैला, अम्ल-खट्टा और मधुर-मीठा, ये रस के पांच भेद हैं। इसलिए रस नाम भी पांच प्रकार का कहा गया है। यथा - तिक्त नाम, कटु नाम, कषाय नाम, अम्ल नाम और मधुर नाम। जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में मिर्च आदि की तरह तीखा रस हो वह तिक्त रस नाम है। इसी प्रकार शेष रस नामों के विषय में भी समझ लेना चाहिये। पांच रसों में कषैला, खट्टा और मीठा ये तीन शुभ रस हैं और तीखा तथा कड़वा अशुभ रस हैं।
फासणामे णं पुच्छा? गोयमा! अट्टविहे पण्णत्ते। तंजहा - कक्खडफासणामे जाव लुक्खफासणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! स्पर्श नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! स्पर्श नाम कर्म आठ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - कर्कश स्पर्श नाम यावत रूक्ष स्पर्श नाम।
विवेचन - स्पृश्यते - जो स्पर्श किया जाता है अर्थात् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय होता है वह स्पर्श कहलाता है। स्पर्श - कर्कश (कठोर) मृदु (कोमल), गुरु (भारी), लघु (हल्का), रूक्ष (रूखा) स्निग्ध (चिकना), शीत (ठण्डा), उष्ण (गर्म) के भेद से आठ प्रकार का है। इसलिए स्पर्श नाम भी आठ प्रकार का कहा गया है। जिसके उदय से प्राणियों के शरीर में पत्थर आदि की तरह कर्कश (कठोर)स्पर्श होता है वह कर्कश स्पर्श नाम है। इसी प्रकार शेष स्पर्श नाम के विषय में भी समझ लेना चाहिये। आठ स्पर्शों में से मृदु, लघु, स्निग्ध और उष्ण, ये चार स्पर्श शुभ हैं और शेष चार अशुभ हैं।
अगुरुलहुयणामे एगागारे पण्णत्ते। उवघायणामे एगागारे पण्णत्ते। पराघायणामे एगागारे.पण्णत्ते।
- भावार्थ - अंगुरुलघु नाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है। उपघात नाम कर्म एक प्रकार का कहा है। पराघात नाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है।
विवेचन - जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर न तो लोहे के समान अत्यन्त भारी हो और न अर्कतूल (आक की रूई) के समान अत्यन्त हलका हो अपितु मध्यम दर्जे का हो उसे अगुरुलघु नाम कर्म कहते हैं।
जिस कर्म के उदय से जीव अपने ही अवयवों से दुःखी हो उसे उपघात नाम कर्म कहते हैं। वे अवयव प्रतिजिह्वा (पडजीभ), गण्डमाला, चोर दांत आदि हैं।
जिस कर्म के उदय से जीव अन्य बलवानों की दृष्टि में अजेय (दूसरों से न जीता जा सकने वाला) समझा जाता है उसे पराघात नाम कर्म कहते हैं।
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