Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
पर्याप्त नाम - जिस कर्म के उदय से जीव अपनी पर्याप्तियों से पूर्ण हो, उसे पर्याप्त नाम कहते हैं।
अपर्याप्त नाम - जिस कर्म के उदय से जीव अपनी पर्याप्तियां पूर्ण किये बिना ही मर जावे, उसे अपर्याप्त नाम कर्म कहते हैं।
साधारण शरीर नाम - जिस कर्म के उदय से अनन्त जीवों को एक (औदारिक) शरीर मिले उसे साधारण शरीर नाम कर्म कहते हैं। जैसे - आलू, अदरख, गाजर, मूली, सकरकन्द आदि जमीकन्द।
प्रत्येक शरीर नाम - जिस कर्म के उदय से एक शरीर का स्वामी एक ही जीव हो उसे प्रत्येक नाम कर्म कहते हैं।
स्थिर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव के दांत, हड्डी आदि अवयव मजबूत हों, उसे स्थिर नाम कर्म कहते हैं।
- अस्थिर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव कान, भृकुटि (भौंहे) जीभ, होठ आदि अवयव अस्थिर होते हैं (स्वतः हिलते रहते हैं) उसे अस्थिर नाम कर्म कहते हैं।
शुभ नाम - जिस कर्म के उदय से नाभि के ऊपर का भाग शुभ हो, उसे शुभ नाम कर्म कहते हैं। . अशुभ नाम- जिस कर्म के उदय से जीव के अवयव अशुभ होते हैं उसे अशुभ नाम कर्म कहते हैं।
सुभगनाम - जिस कर्म के उदय से जीव सब का प्रेम पात्र हो, उसे सुभग (सौभाग्य) नाम कर्म कहते हैं।
दुर्भग नाम - जिस कर्म के उदय से जीव किसी का प्रीति पात्र न हो, उसे दुर्भग नाम कर्म कहते हैं।
सुस्वर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर (आवाज) कोयल की तरह मधुर हो, उसे सुस्वर नाम कर्म कहते हैं।
दुःस्वर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर सुनने में बुरा लगे, उसे दुःस्वर नाम कर्म कहते हैं।
आदेय नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का वचन लोगों में आदरणीय हो, उसे आदेय नाम कर्म कहते हैं।
अनादेय नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का वचन लोगों में माननीय न हो, उसे अनादेय नाम कर्म कहते हैं।
यशःकीर्ति नाम - जिस कर्म के उदय से लोगों में यश और कीर्ति हो, उसे यश:कीर्ति नाम कर्म कहते हैं। कहा है -
एक दिग्गामिनी कीर्तिः सर्व दिग्गामुकं यशः। दान पुण्य भवा कीर्तिः पराक्रम कृतं यशः॥
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