Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ
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भावार्थ - सातावेदनीय कर्म की ईर्यापथिक बन्धक की अपेक्षा स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भेद रहित दो समय की है तथा साम्परायिक बन्धक की अपेक्षा जघन्य बारह मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। निषेक काल पूर्ववत् समझना चाहिए।
असायावेयणिज्जस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोड़ाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साइं अबाहा० ॥ ६२० ॥
भावार्थ - असातावेदनीय कर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग की अर्थात् भाग की है और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है और अबाधाकाल से न्यू स्थिति कर्म निषेक काल है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वेदनीय कर्म की स्थिति, अबाधाकाल एवं निषेक काल का कथन किया गया है । सातावेदनीय की ईर्यापथिक (अकषायिक, केवल योग हेतुक) बंधन की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट रहित दो समय की स्थिति है और सांपरायिक ( कषाय हेतुक) बन्धन की अपेक्षा जघन्य बारह मुहूर्त की स्थिति है । असातावेदनीय की जघन्य से पल्योपम के असंख्यातवें भाग से न्यून तीन सप्तांश सागरोपम की स्थिति पांच निद्रा की अपेक्षा समझनी चाहिये क्योंकि उनकी भी उत्कृष्ट स्थिति तीसकोटाकोटि सागरोपम की है।
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सम्मत्तवेयणिज्जस्स पुच्छा ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाइं साइरेगाइं । मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहणणेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेण ऊणगं, उक्कोसेणं सत्तरि कोडाकोडीओ, सत्त य वाससहस्साइं अबाहा, वि
अबाहूणिया० ।
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सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं । भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! सम्यक्त्व वेदनीय की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! सम्यक्त्व वेदनीय स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम की है।
मिथ्यात्व - वेदनीय की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम एक सागरोपम की है और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है तथा कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्मनिषेककाल है।
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