Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ
७९
种种种种种种种种种种种种种种种种特
१. एकेन्द्रिय जाति नाम - जिस कर्म के उदय से जीव को एकेन्द्रिय जाति मिले, उसे एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म कहते हैं।
२. बेइन्द्रिय जाति नाम - जिन जीवों के स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ होती हैं वे बेइन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे - शंख, सीप, लट आदि। जिस कर्म के उदय से जीव को बेइन्द्रिय जाति मिले, उसे बेइन्द्रिय जाति नाम कर्म कहते हैं।
३. तेइन्द्रिय जाति नाम - जिन जीवों के स्पर्शन, रसना और घ्राण (नाक) ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं उन्हें तेइन्द्रिय कहते हैं। जैसे चींटी, मकोड़ा आदि। जिस कर्म के उदय से जीव को तेइन्द्रिय जाति मिले, उसे तेइन्द्रिय जाति नाम कर्म कहते हैं।
४. चउरिन्द्रिय जाति नाम - जिन जीवों के स्पर्शन, रसना, घाण और चक्षु (नेत्र) ये चार इन्द्रियाँ होती हैं उन्हें चौइन्द्रिय कहते हैं। जैसे - मक्खी, मच्छर आदि। जिस कर्म के उदय से जीव को चउरिन्द्रिय जाति मिले, उसे चउरिन्द्रिय जाति नाम कर्म कहते हैं।
५. पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय, ये पांचों इन्द्रियाँ प्राप्त हो उसे पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म कहते हैं।
सरीरणामे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - ओरालियसरीरणामे जाव कम्मगसरीरणामे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! शरीरनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! शरीर नाम कर्म पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - औदारिक शरीर नाम कर्म यावत् कार्मण शरीर नाम कर्म।
विवेचन - जो शीर्ण (क्षण क्षण में क्षीण) होता रहता है वह शरीर कहलाता है। शरीरों का जनक कर्म 'शरीर नाम कर्म' कहलाता है। शरीर के पांच भेद हैं - १. औदारिक २. वैक्रिय ३. आहारक ४. तैजस और ५. कार्मण। शरीरों के भेद से शरीर नाम कर्म के ५ भेद हैं।
सरीरोवंगणामे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते?
गोयमा! तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - ओरालियसरीरोवंगणामे, वेउव्वियसरीरोवंगणामे, आहारगसरीरोवंगणामे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! शरीर-अंगोपांग नाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! शरीर-अंगोपांग नाम कर्म तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. औदारिक शरीर-अंगोपांग २. वैक्रिय शरीर-अंगोपांग और ३. आहारक शरीर-अंगोपांग।
विवेचन - जिस कर्म के उदय से शरीर के अङ्ग, उपाङ्ग और अंगोपाङ्ग मिले, उसको शरीर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org