Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र +FEMMMMMMMMMMMMMM
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दरिसणावरणिजस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते?
गोयमा! दरिसणावरणिजस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते। तंजहा - णिहा १, णिहाणिद्दा २, पयला ३, पयलापयला ४, थीणद्धी ५ , चक्खुदंसणावरणे ६, अचक्खुदंसणावरणे ७,
ओहिदंसणावरणे ८, केवल-दसणावरणे ९, जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम तेसिं वा उदएणं पासियव्वं ण पासइ पासिउकामे विण पासइ, पासित्ता वि ण पासइ, उच्छण्णदंसणी यावि भवइ दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, एस णं गोयमा! दरिसणावरणिजे कम्मे, एस णं गोयमा! दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जीव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते॥६०३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीय कर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके दर्शनावरणीय कर्म का नौ प्रकार का अनुभाव कहा गया है। वह इस प्रकार हैं - १. निद्रा २. निद्रा-निद्रा ३. प्रचला ४. प्रचला-प्रचला तथा ५. स्त्यानर्द्धि एवं ६. चक्षुदर्शनावरण ७. अचक्षुदर्शनावरण ८. अवधिदर्शनावरण
और ९. केवलदर्शनावरण। जिस पुद्गल को या जिन पुद्गलों को अथवा पुद्गल परिणाम को या वित्रसा-स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम को वेदता है, अथवा उनके उदय से देखने योग्य को नहीं देखता, देखना चाहते हुए भी नहीं देखता, देखकर भी नहीं देखता। दर्शनावरणीय कर्म के उदय से आच्छादित दर्शन वाला भी हो जाता है।
हे गौतम! यह दर्शनावरणीय कर्म हैं। हे गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को पाकर दर्शनावरणीय कर्म का नौ प्रकार का अनुभाव कहा गया है। .
विवेचन - दर्शनावरणीय कर्म का विपाक नौ प्रकार का कहा गया है जो इस प्रकार है - १. निद्रा - जिस निद्रा से सरलता पूर्वक जागा जा सके। २. निद्रा-निद्रा - जो निद्रा बड़ी कठिनाई से भंग हो, ऐसी गाढ़ी नींद को निद्रा-निद्रा कहते हैं। ३. प्रचला - बैठे-बैठे या खड़े-खड़े आने वाली निद्रा 'प्रचला' कहलाती है।
* पाठान्तर-थीणगिद्धी
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