Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - प्रथम उद्देशक - पांचवां द्वार
'श्रोत्र' से श्रोत्रेन्द्रिय विषयक क्षयोपशम (लब्धि) का ग्रहण किया गया है। 'श्रोत्र विज्ञान' से 'श्रोत्रेन्द्रिय का उपयोग' ग्रहण किया गया है। इनका आवरण 'श्रोत्रावरण' और 'श्रोत्र विज्ञानावरण' है। इसी तरह ३. नेत्रावरण ४. नेत्रविज्ञानावरण ५. घ्राणावरण ६. घ्राणविज्ञानावरण ७. रसावरण ८. रसविज्ञानावरण ९. स्पर्शावरण १०. स्पर्शविज्ञानावरण के विषय में भी समझना चाहिये।
नेत्रावरण - जैसे मोतियाबिन्द, कालापानी आदि होने से नहीं दिखना।
नेत्रविज्ञानावरण - दिखता तो बराबर है परन्तु पहिचान बराबर नहीं होती जैसे सामान्य व्यक्ति एवं चतुर व्यक्ति दोनों के द्वारा धूर्त को देखने पर वह चतुर व्यक्ति उसकी शक्ल, हावभाव आदि से पहिचान लेता है।
स्पर्शनावरण - स्पर्श शक्ति की मन्दता होना या स्पर्श का अनुभव ही नहीं होना। जैसे पूरे शरीर में लकवा हो जावे तो स्पर्श का अनुभव ही नहीं होता है। यहाँ स्पर्शनेन्द्रिय नहीं होना ऐसा अर्थ नहीं करना क्योंकि सभी जीवों (छद्मस्थों) में स्पर्शनेन्द्रिय तो होती ही है।
स्पर्शनेन्द्रिय का आवरण कैसे समझना - स्पर्शनेन्द्रिय का आवरण अपर्याप्त की अपेक्षा संभव होता है। जब स्पर्श इन्द्रिय की पर्याप्ति पूर्ण नहीं हुई होती है। इसके सिवाय जिसके स्पर्शनेन्द्रिय बराबर काम करने में सक्षम न हो अथवा लकवा (पक्षाघात) आदि रोगों के कारण से उसका स्पर्श बाधित हो तब स्पर्शन इन्द्रिय का आवरण संभव हो सकता है।
स्पर्शविज्ञानावरण - स्पर्श का अनुभव होने पर भी ज्ञान की मन्दता से उसका मालूम नहीं
पडना।
सारांश - स्पर्शावरण में सामान्य अनुभव का नहीं होना। स्पर्श विज्ञानावरण में विशेष अनुभव का नहीं होना समझना चाहिए। खींचन के किसी भाई को मामा-भानजा में मालूम नहीं पड़ता। इसी तरह गर्म, ठण्डा, स्पर्श का मालूम नहीं होना स्पर्शनावरण है। मालूम होने पर भी ज्ञान नहीं होना। निगोद जीवों में स्पर्शावरण और स्पर्शविज्ञानावरण है तथा इन्द्रियों का क्षयोपशम भी है अत: इनमें से एक में विशेष अनुभव नहीं होना, एक में कम अनुभव का भी नहीं होना जैसे एक ही दूरबीन से देखने पर भी विज्ञान में फर्क होता है क्योंकि वह मतिज्ञान का विषय है। इन्द्रियाँ साधन है और इन्द्रियों से होने वाला विषय का बोध, ज्ञान (विज्ञान) है। इन्द्रियों के आवरण का क्षयोपशम होने से शब्द आदि विषयों का ग्रहण तो बराबर हो जाता है, परन्तु ज्ञान पर आवरण होने से जीव उनको बराबर समझ नहीं पाता है। अतः इन्द्रिय प्राप्ति के साथ विज्ञान का क्षयोपशम भी आवश्यक है।
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