Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! आरंभिया किरिया कज्जइ जाव अपच्चक्खाण किरिया वि कजइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया णो कज्जइ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्य विरत नैरयिक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है, यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया होती है ?
उत्तर - हे गौतम! मिथ्यादर्शनशल्य विरत नैरयिक के आरम्भिकी क्रिया भी होती है, यावत् अप्रत्याख्यान क्रिया भी होती है, किन्तु मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती है।
एवं जाव थणियकुमारस्स।
भावार्थ - मिथ्यादर्शन विरत नैरयिक के क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के क्रिया सम्बन्धी आलापक कहने चाहिए।
मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा?
गोयमा! आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपच्चक्खाणकिरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ, मिच्छादसणवत्तिया किरिया णो कज्जइ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इसी प्रकार की पृच्छा मिथ्यादर्शनशल्य विरत पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक की क्रिया सम्बन्धी है?
उत्तर - हे गौतम! उसके आरम्भिकी क्रिया होती है, यावत् मायाप्रत्यया क्रिया होती है। अप्रत्याख्यान क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है, किन्तु मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती है।
मणूसस्स जहा जीवस्स।
भावार्थ - मिथ्यादर्शनशल्य विरत मनुष्य की क्रिया सम्बन्धी प्ररूपणा सामान्य जीव के क्रियासम्बन्धी प्ररूपणा के समान समझना चाहिए।
वाणमंतर जोइसिय वेमाणियाणं जहा णेरइयस्स॥५९६॥
भावार्थ - मिथ्यादर्शनशल्य विरत वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों का क्रिया सम्बन्धी कथन नैरयिक के क्रिया सम्बन्धी कथन के समान समझना चाहिए।
क्रियाओं का अल्पबहुत्व एयासि णं भंते! आरंभियाणं जाव मिच्छादसणवत्तियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
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