Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१. सभी जीव सप्तविधबन्धक होते हैं, २. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक होता है ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और अनेक अष्टविधबन्धक होते हैं।
एवं जाव वेमाणिया, णवरं मणूसाणं जहा जीवाणं ॥ ५९५ ॥
भावार्थ - इसी प्रकार यावत् अनेक वैमानिकों के कर्मप्रकृतिबन्ध के आलापक कहने चाहिए । विशेषता यह है कि अनेक मनुष्यों के कर्मप्रकृति सम्बन्धी आलापक समुच्चय अनेक जीवों के कर्म प्रकृति सम्बन्धी आलापक के समान कहना चाहिए ।
विवेचन - मिथ्यादर्शन शल्य से विरति वाले अनेक जीव कितनी कर्म प्रकृतियाँ बांधते हैं ? इसके उत्तर में भी पूर्व में कहे अनुसार २७ भंग समझने चाहिये। नैरयिकों में तीन भंग होते हैं - १. सभी सात कर्म बांधने वाले, जब एक भी जीव आठ कर्म प्रकृतियों को बांधने वाला नहीं होता है तब यह प्रथम भंग होता है २. जब एक नैरयिक आठ कर्म प्रकृतियों का बंध करता है तथा बहुत से सात कर्म प्रकृति बांधने वाले और एक आठ प्रकृति बांधने वाला होता है - यह दूसरा भंग ३. जब आठ कर्म प्रकृति बांधने वाले बहुत होते हैं तथा सात कर्म प्रकृति बांधने वाले और आठ कर्म प्रकृति बांधने वाले बहुत होते हैं - यह तीसरा भंग होता है। इस प्रकार तीन भंग वैमानिक पर्यंत समझने चाहिये। मनुष्यों में २७ भंग सामान्य जीव के अनुसार कहना चाहिये।
पापों से विरत जीवों में क्रिया भेद
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ ?
गोयमा ! पाणाइवायविरयस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कजइ ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! प्राणातिपात से विरत जीव के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है ? उत्तर - हे गौतम! प्राणातिपातविरत जीव के आरम्भिकी क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं
होती है।
उत्तर हे गौतम! सभी भंग इस प्रकार होते हैं।
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प्रज्ञापना सूत्र
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
भावार्थ प्रश्न हे भगवन् ! प्राणातिपात विरत जीव के क्या पारिग्रहिकी क्रिया होती है ?
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उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ ?
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