Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३२
प्रज्ञापना सूत्र
जिसको ये तीनों क्रियाएं होती हैं, उसको आगे की दो क्रियाएं अप्रत्याख्यानी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया भजना से होती हैं। जिसको, आगे की दोनों क्रियाएं होती हैं, उसको ये प्रारम्भ की तीनों क्रियाएं नियम से होती हैं। जिसको अप्रत्याख्यान क्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है। किन्तु जिसको मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यान क्रिया नियम से होती है।
विवेचन - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों को प्रथम की तीन क्रियाएं परस्पर नियत होती है क्योंकि देशविरति तक ये क्रियाएं अवश्य होती है। बाद की दो क्रियाएं भजना से होती है। अप्रत्याख्यान क्रिया अविरत सम्यग् दृष्टि के और मिथ्यादर्शन प्रत्यया मिथ्यादृष्टि के होती है। ..
मणूसस्स जहा जीवस्स।
भावार्थ - मनुष्य में पूर्वोक्त क्रियाओं के सहभाव का कथन सामान्य जीव में क्रियाओं के सहभाव के कथन की तरह समझना चाहिए।
वाणमंतर-जोइसिय वेमाणियस्स जहा णेरइयस्स।
भावार्थ - वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों में क्रियाओं के परस्पर सहभाव का कथन नैरयिक में क्रियाओं के सहभाव-कथन के समान समझना चाहिए।
जं समयं णं भंते! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ तं समयं पारिग्गहिया किरिया कज्जइ?
एवं एए जस्स जं समयं जं देसं जं पएसेणं च चत्तारि दंडगा णेयव्वा, जहा णेरइयाणं तहा सव्वदेवाणं णेयव्वं जाव वेमाणियाणं॥५९३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जिस समय जीव के आरम्भिकी क्रिया होती है, क्या उस समय पारिग्रहिकी क्रिया होती है?
उत्तर - हे गौतम! क्रियाओं के परस्पर सहभाव के सम्बन्ध में इसी तरह समझना चाहिये।
इस प्रकार - १. जिस जीव के २. जिस समय में ३. जिस देश में और ४. जिस प्रदेश में - यों चार दण्डकों के आलापक कहने चाहिए। जैसे नैरयिकों के विषय में ये चारों दण्डक कहे उसी प्रकार समस्त देवों के विषय में यावत् वैमानिकों तक कहने चाहिए।
___ अठारह पापों से विरमण अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे कज्जइ? हंता! अत्थि।
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org