Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
विवेचन - जिसके आरम्भिकी क्रिया होती है उसके अप्रत्याख्यानी क्रिया भजना से होती है। क्योंकि प्रमत्त संयत और देश विरत को अप्रत्याख्यानी क्रिया नहीं होती किन्तु जो अविरत सम्यग् दृष्टि आदि हैं उनके होती है। जिसके अप्रत्याख्यानी क्रिया होती है उसके आरम्भिकी क्रिया नियमा से होती है। क्योंकि अप्रत्याख्यानी- अविरति को अवश्य आरंभ का होना संभव है।
एवं मिच्छादंसणवत्तियाए वि समं ।
भावार्थ - इसी प्रकार आरम्भिकी क्रिया के साथ अप्रत्याख्यानी क्रिया के सहभाव के कथन के समान आरम्भिकी क्रिया के साथ मिथ्यादर्शनप्रत्यया के सहभाव का कथन करना चाहिए।
विवेचन- जिसको आरम्भिकी क्रिया होती है उसको मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् होती है कदाचित् नहीं होती क्योंकि मिथ्यादृष्टि को तो यह क्रिया होती है किन्तु शेष को नहीं होती । जिसको मिथ्यादर्शन क्रिया होती है उसको आरंभिकी क्रिया अवश्य होती है क्योंकि मिथ्यादृष्टि विरति रहित होने से उससे अवश्य आरंभ का होना संभव है।
एवं परिग्गहिया वितिर्हि उवरिल्लाहिं समं संचारेयव्वा ।
भावार्थ - इसी प्रकार आरम्भिकी क्रिया के साथ जैसे पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानी क्रिया के सहभाव का प्रश्नोत्तर है, उसी प्रकार आगे की तीन क्रियाओं ( मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया) के साथ सहभाव - सम्बन्धी प्रश्नोत्तर समझ लेना चाहिए।
जस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ तस्स उवरिल्लाओ दो वि सिय कज्नंति, सिय णो कज्जंति, जस्स उवरिल्लाओ दो कज्जंति तस्स मायावत्तिया किरिया णियमा कज्जइ ।
भावार्थ - जिसके मायाप्रत्यया क्रिया होती है, उसके आगे की दो क्रियाएं अप्रत्याख्यानी और मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती हैं, किन्तु जिसके आगे की दो क्रियाएं अप्रत्याख्यानी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया होती है, उसके मायाप्रत्यया क्रिया नियम से होती है ।
जस्स अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ तस्स मिच्छादंसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ, जस्स पुण मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जइ ।
भावार्थ - जिसके अप्रत्याख्यानी क्रिया होती है, उसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती, किन्तु जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यान क्रिया नियम से होती है।
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