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को जीने से ज़्यादा होगा। राम का नाम लेने से भला नहीं होगा वरन् उनकी मर्यादाओं में से पन्द्रह प्रतिशत मर्यादाएँ भी अपने जीवन से जोड़ ली जाएँ तो हमारे घर, जीवन, समाज और व्यवहार में रामायण पुनः घटित हो सकती है। केवल पोथियों का अखण्ड पाठ भर कर लेने पर कबीर जैसे लोग कहेंगे -
___पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।। ढाई आखर यानी प्रेम की बात । महापुरुषों से प्रेम कर डालो। पत्नी से प्रेम करोगे तो पत्नी तो एक दिन मर जाएगी। बच्चों से प्रेम किया तो वे तभी तक हमारे साथ हैं जब तक उड़ने के लिए उनके पंख नहीं लगते। तो प्रेम, महापुरुष से करो। गंगा से प्रेम करेंगे तो गंगोदक बन जाएंगे और नाले से प्रेम करेंगे तो गंदला नाला बन जाएँगे। गलत स्थान, गलत किताब, गलत आदत, गलत सोहबत = गलत जीवन । अच्छा स्थान, अच्छी किताबें, अच्छी आदत, अच्छी सोहबत = अच्छा जीवन । यही है जीने की कला। ___ मैं महापुरुषों से प्रेम करता हूँ और मैंने उनके जीवन से बहुत कुछ सीखने का प्रयत्न भी किया है। मैं किताबें टाइम-पास करने के लिए नहीं पढ़ता । यहाँ होने वाली चर्चा भी टाइम-पास करने के लिए नहीं है वरन् यह ज्ञान-चर्चा तो गंगोत्री से गंगाजल का छलकना है। बाती सुलग रही है, रोशनी बिखर रही है। जीवन में कुछ रचनात्मक करने के लिए मैं अच्छी किताबें पढ़ा करता हूँ। दुनिया की हर किताब अच्छी ही हो यह ज़रूरी नहीं है। मैं इस भाव के साथ किताब को पढ़ता या कुछ लिखता हूँ कि इसके जरिए मैं कुछ रचनात्मक काम कर रहा हूँ। __मैंने राम नाम की माला नहीं जपी फिर भी मैं राम से प्रेम करता हूँ क्योंकि मैं उनकी मर्यादा का कायल हूँ। मैंने राम से विपरीत हालातों में भी मुस्कुराना सीखा है तभी तो मैं राम का उपासक हूँ। आप तो राम की पूजा इसलिए करते हैं कि हिन्दू कुल में पैदा हो गए हैं। मैं राम की पूजा इसलिए करता हूँ क्योंकि उनके कुछ गुणों ने मुझे प्रभावित किया है और मैं उन गुणों को अपने साथ जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हुआ। राम की मर्यादा ! राम की मुस्कान ! मजा आता है। ये सब चीजें जीवन को मधुर स्वाद देती हैं। मैं कृष्ण से भी प्रेम करता हूँ। कृष्ण से मैंने कर्म करना सीखा। उनसे सीखा कि सबके बीच रहो फिर भी अनासक्त और
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