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तुम्हारे हाथ में था, पर क्या तुम एक काम कर सकते हो ? अंगुलीमाल ने कहा - मैं निर्मम हूँ, मैं कुछ भी कर सकता हूँ । तब बुद्ध ने कहा- तुमने जिस SI को पेड़ से अलग कर दिया है, उसे वापस उसी स्थान पर जोड़ दो।
अब अंगुलीमाल के चौंकने की बारी थी । उसने कहा यह कैसे सम्भव है, काटना तो मेरे हाथों में था, पर जोड़ना नहीं है । तब बुद्ध कहते हैं - महान् व्यक्ति वह नहीं होता जो जुड़े हुए को काटता है, वरन् जो कटे हुए को भी जोड़ना जानता है वह महान होता है। अंगुलीमाल अब तक तुमने काटा ही काटा है, अब तुम मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें जुड़ने और जोड़ने की कला सिखाता हूँ। अभी तक तुमने मरने और मारने की कला सीखी है, अब मैं तुम्हें जीने की कला सिखाता हूँ। और तब अंगुलीमान के जीवन में परिवर्तन होता है। महापुरुषों का छोटा-सा शब्द भी बड़ा काम कर सकता है ।
महापुरुष हुए हैं, होते हैं और आगे भी होंगे। जो होंगे उनको हम नहीं देख सकते, जो हैं उन्हें पहचानने के लिए अन्तरदृष्टि चाहिए लेकिन जो हो चुके हैं उन वीतराग अर्हत् पुरुषों की वाणी वेद, पिटक, आगम, जिनसूत्र, कुरान, बाइबिल या गीता के रूप में आज भी हमारे बीच मौजूद है। जैसे लोग सूरज से रोशनी पाते हैं, चाँद-तारों से दिशाओं का निर्धारण करते हैं, हवाओं के आधार पर नौकाओं को पार लगाते हैं उसी तरह भले ही महापुरुष हमारे बीच न हों लेकिन उनकी वाणी आज भी हमारे जीवन में रोशनी का काम करती है। जो महापुरुषों की अंगुली थामने को तैयार हैं वे घर-संसार - परिवार की गोद से बाहर निकलें । वे अपनी मोह-ममता के आँचल से बाहर निकलें ताकि महापुरुष उनकी अंगुली पकड़कर उन्हें इस किनारे से उस किनारे तक, इस पथ से उस पथ तक, तलहटी से शिखर तक ले जा सकें ।
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महावीर महापुरुष हुए। वे अपने समय में जितने महान कहलाए आज के | समय में कहीं अधिक महान कहला रहे हैं । इस दुनिया की यही रीत है कि यह मरने के बाद ही पूजती है, मरने के बाद हर महापुरुष की प्रतिमा बनाती है, मंदिर बनाती है और उसकी पूजा करती है। जीते जी तो जीसस को सलीब पर चढ़ाते हैं, महावीर के कानों में कीलें ठोकते हैं। यह दुनिया भी ग़ज़ब है जब रामजी चले गए तो सारी दुनिया राम-नाम का जाप कर रही है, पर जब वे थे तब
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