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विमा-मामी
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बनकर वेद पढ़ते हुए अयोध्या के वन में पहुँचना। क्षीरकदम्ब का वृत्तान्त। राजा वसु, पवर्तक, और नारद का उनसे विद्या ग्रहण करना।क्षीरकदम्बका बसु को पोटमा। गुरु पत्नी द्वारा उसे बचाना। वसु को सिंहासन की प्राप्ति । पर्वबक का प्रायोगिक परीक्षा में असफल रहना। पत्नी का पति को उलाहना देना । पति क्षीरकदम्ब का अपनी पत्नी को समझाना कि उसका बेटा जड़ मूर्ख है। 'अज' शब्द को लेकर विवाद । पर्वतक का निर्वासन । उसका सालकायण का सहायक बन जाना । सासंकायण और पर्वतक का मिलकर राजा सगर से बदला लेना। यज्ञ में दोनों को होम देना। नारद का अयोध्या जाकर यज्ञ का विरोध करना। नारद का यह तर्क कि यम-कर्म से शान्ति महीं होती।
सतरवों संधि
44-63
मन्त्री की अच्छी वाणी सुनकर राजा का मिथ्यादर्शन नष्ट होना । राजा दशरथ का पुरोहित से रावण का पूर्वभव पूछना। सारसमुच्चय देश के नागपुर नगर के राजा नरदेव द्वारा दीक्षा लेकर तपश्चरण करना । विधाघर चपलवेग को देखकर निदानपूर्वक मरना और स्वर्ग में देव होना । विजयाध पर्वत के मेघ शिखर का राजा सहस्रग्रीव का खिन्न होकर त्रिकुट पर्वत पर आ बसना। उसकी वंश-परम्परा का अंतिम राजा पुलस्त्य का गद्दी पर जैठना । उसकी पत्नी मेधलक्ष्मी से रावण का जन्म । रावण के प्रताप का वर्णन। एक बार पत्नी सहित उसका पुष्पक विमान में विहार करना। विद्या सिद्ध करती हुई मणिवती पर आसक्त होना । विघ्नों से परेशान होकर मणिवती का इस संकल्प के साथ मरना 'मैं पुत्री होकर इसकी मौत का कारण बर्न ।' मन्दोदरी के गर्भ से रावण की पुत्री सीता के रूप में उसकी उत्पत्ति। अपशकुन होने पर राक्षण द्वारा उसे मंजूषा में रखकर मिथिला नगरी के उद्यान में गड्या दिया जाना। किसान को हल चलाते हुए कन्या मिलना और राजा जनक के पास उसका पहेपना । जनक द्वारा सीता का पालन-पोषण । सीता के सौन्दर्य का वर्णन। राम से सीता का विवाह। अयोध्या आगमन । राम का सात अन्य कन्याओं से विवाह । बसन्त का आगमन । वसन्तक्रांडा का देश के लिए प्रस्थान। काशी पर आधिपत्य । राम-सक्ष्मण के रूप-सौन्दर्य को देखकर नगरवनिताओं की प्रतिक्रियाएं और कामुक अनुभाव ।
इकहत्तरधी संधि
64-83
नारद का वर्णन । नारद का रावण को भड़काना । रावण की प्रशंसा। राम से सीता के विवाह की नारद द्वारा सूचना देना । रावण द्वारा आक्रमण की योजना बनाना । कलहप्रिय नारद का प्रस्थान । मारीच और विभीषण का रावण को समझाना । कामप्रशास्त्र के अनुसार स्त्रियों के विविध प्रकारों का वर्णन । दूती के रूप र बहिन चन्द्रनखा को भेजना । काशी के निकट चित्रकूट उद्यान का वर्णन । राम-लक्ष्मण की अन्तःपुर के साथ कीड़ा । जल-क्रीड़ा। उधर सीता के अनिन्ध सौन्दर्य को देखकर चन्द्रनखा का मुग्ध होना । बद्धा बन कर सीता से बातचील। सीता के नारीविषयक विचार । चन्द्रनखा की वापसी । विरोध के बावजूद रावण का काशी के लिए प्रस्थान ।