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महाकवि पुष्पवमा विरचित महापुराण बलएबहु पायपोमु णवइ
कोवारुणच्छु लक्खणु चवइ । मई रवियरदारियतिमिरबलि हणवंतु णेइ.जइ गयणयलि । जइ सायरु सलिलु दुग्गु कमई जइ लंकाणयरिणियडि यवइ । तो कुंडलमंडियगंडयलु
तोडेप्पिणु दहमुहसिरकमलु। तुह गेहिणि देमि समेइणिय णच्चावमि विड्डर डाइणिय । घत्ता-दे आएसु महुँ सरा करउ गमणु साहेज्ज ॥
कताहरणरुहु फेडमि अज्जु जि क्याणिज्जउं ।।211
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हेला--ता सीराउहेण उवसाभिओ अणंतो ।।
णं केसरिकिसोरओ रोस विप्फुरंतो ॥छ।। भडयणु णिहिलु वि ओसारियउ पचंगु मंतु भवयारियउ। मउवाउ' अवाउ सहाउ धणु मंतिउ महुं किंबदरिहि बलु कवणु । आरंभ कम्मफलसिद्धि किह किह दइवु हबइ भणु मुणि जिह । तं णिसुणिवि मंगलेण कहिड णिव णिसुणि मंतु विगईरहिउ ।। दुग्गामिउ बलवंतु वि विज्रह खगराउ तिखंडधराहिवइ ।
जइ सीय देह रणि णन्भिाइ तो भल्लां मह मणि आवडइ। बाहुबल देखा । वह राम के चरणकमला में प्रणाम करता है, और क्रोध से लाल आँखों वाला लक्ष्मण कहता है यदि हनुमान्, जिसने सूर्य की किरणों से अंधकार की शक्ति विदारित की है, ऐसे आकाश में मुझे ले जाए, समुद्र जल और दुर्ग का उलंघन करवा सके; यदि लंका नगरी के निकट स्थापित कर सके तो मैं कुंडलों से मंडित गंडतल वाले दशमुख के सिरकमल को तोड़ कर भूमि सहित सीता देवी को लाकर दे दूं। तथा भयानक डाइनी नचाऊँ।
घत्ता-आप आदेश दें ! कामदेव हनुमान् गमन में सहायता करें तो मैं कान्ताहरण के कलंक को आज ही नेस्तनाबूद कर दूं।
तब श्रीराम ने लक्ष्मण को इस प्रकार प्रशान्त किया कि मानो क्रोध से स्फुरित सिंह-किशोर हो।
समस्त योद्धा समूह को हटा दिया गया और पंचाग मंत्र का विचार किया गया । उपाय सहित उपाय सहाय और धन में मेरा क्या मंत्र है ? शत्र ओं को सेना कितनी है ? आरंभ और कर्मफल सिद्धि किस प्रकार हाती है, देव किस प्रकार होता है ? मुझे बताओ, जिस प्रकार तुमने विचार किया है। यह सुनकर मंगल ने कहा-हे राजन्, अन्यथा नहीं होने वाला मंत्र सुनिए । विद्याधर राजा, तीन खंड धरती का स्वामी है । दुर्गाश्रित बलवान और विजयी है। यदि वह सीता वे देता है और युद्ध में नहीं लड़ता तो यह बात मेरे मन के लिए अच्छी लगतो है । इसका उपहास करते 4. A माह ? माहड़। 5. " हणुबतु । 6. डाबर भयानकं संग्रामो वा; विटर इति पाठेऽप्पयमेवार्थः । 7.AP स! 8. AP कंताहरण रहो।
(3) I. A सउवायउ चाउ राहाउ बलु। 2. AP महु वइरिहिं कवण बलु ।